Category: अगला-कदम

63 प्रकृतियों का नाश

क्षपक श्रेणी चढ़ते समय 60 प्रकृतियों का नाश हो जाता है पर 3 आयु (नरक, तिर्यंच, देव) का अस्तित्व चरम-शरीर के होता ही नहीं है।

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संहनन

मोक्ष की योग्यता, क्षपक-श्रेणी, क्षायिक सम्यग्दर्शन, क्षायिक चारित्र उत्तम-संहनन से ही प्राप्त होता है। (श्री धवला जी की 17वीं पुस्तक – सतकर्म पञ्चिका – अनुवाद

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शुक्ल-ध्यान

दूसरे शुक्ल-ध्यान का समय, पहले शुक्ल-ध्यान से कम होता है, इसलिये इसमें योग-परिवर्तन के लिये समय नहीं रहता। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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सूक्ष्मसाम्पराय

सूक्ष्मसाम्पराय को साम्पराय-चारित्र भी कहा है। सो सूक्ष्मसाम्पराय कषाय, गुणस्थान, चारित्र का भी नाम है। 10वें गुणस्थान तक चारित्र भी सराग, सम्यग्दर्शन भी चाहे क्षायिक

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निर्जरा

असंख्यात गुणी निर्जरा के 10-11 स्थान हैं – सम्यक्त्व(4थे गुणस्थान) के समय से लेकर 13 गुणस्थान तथा केवली समुद्घात तक। 14वें गुणस्थान में तो 85

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संक्रमण

सामान्य संक्रमण, हर गुणस्थान में, हर समय। जहाँ-जहाँ अपूर्व-करण, वहाँ गुण-संक्रमण। जिस गुणस्थान में उपशम/क्षय, उनका गुण-संक्रमण, उस गुणस्थान में। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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शुद्ध-भाव

संसारी जीवों के, आगम में दो ही भाव हैं – शुभ व अशुभ, शुद्ध-भाव तो सिद्धों में होगा। अध्यात्म में शुद्ध-भाव आता है, जिसका अर्थ

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विपाकी

1. जीव विपाकी = जीव को फलानुभूति जैसे ज्ञानावरण/दर्शनावरण 2. पुद्गल विपाकी = शरीर को फलानुभूति जैसे नामकर्म आदि 3. क्षेत्र विपाकी = एक क्षेत्र

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मंगल आशीष

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