Category: अगला-कदम
असंख्यात गुणी निर्जरा
इसे गुण श्रेणी निर्जरा भी कहते हैं। गुण = निर्जरा गुणाकार रूप से। श्रेणी = पंक्ति में एक के बाद एक। पहले समय में जितना
व्यवहार / निश्चय
दूध में घी होता है, इसको आचार्यों ने निश्चय कहा है। निश्चय ही घी की उपलब्धि है। निश्चय के लिये समीचीन व्यवहार अनिवार्य है। व्यवहार
अनुजीवी / प्रतिजीवी
अनुजीवी – चेतना के गुण, प्रतिजीवी – शरीर के, जैसे आयु, एक शरीर के बाद अगला शरीर मिलेगा। (तो आयु शरीर के साथ रहेगी। शरीर
सासादन में मिथ्यात्व
पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की व्युच्छत्ति होने पर भी सासादन में मिथ्यात्व कैसे ? योगेन्द्र ज्ञान को अज्ञान बनाने में कषाय भी कारण है। मिथ्यात्व
अगुरुलघु
1. सब जीवों में सामान्य गुण….जो उस द्रव्य के गुणों को बदलने नहीं देता, अपनी-अपनी पर्याय में ही परिणमन करता है। 2. नाम कर्म का
धर्म-ध्यान
इसके 4 भेद और भी होते हैं (आज्ञा-विचयादि के अलावा) , पिंडस्थादि (पार्थिवी, आग्नेय, मारुती, वारुणी >>>तत्वरुपवती) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
दर्शन मोहनीय से अदर्शन
दर्शन मोहनीय के 3 भेदों में सम्यग्दर्शन के साथ सम्यक्-प्रकृति में परिषह/दोष भी। (क्षयोपशम) सम्यग्दृष्टि के चल, मल, अगाढ़ दोष होते हैं। चारित्रवान को भी
स्कंध / स्पर्धक
स्कंध – सभी प्रकार के परमाणु पिण्ड स्पर्धक – कर्म की अनुभाग शक्त्ति बताने के लिये। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
आयुकर्म
आयुकर्म का सम्बंध काल से नहीं बल्कि कर्म के निषेकों से होता है। उदीरणा में निषेक ज्यादा खिरते हैं। 7वें गुणस्थान में मुनिराज की आयुकर्म
तीर्थंकर प्रकृति बंध
तीर्थंकर प्रकृति बंध का प्रारम्भ – 4-7 गुणस्थानों में, बाद में 8वें गुणस्थान की प्रारम्भ अवस्था तक होता रहता है। यह प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम, क्षयोपशम या
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