Category: अगला-कदम
सीमा
महाभारत की कथा हैः शिशुपाल के जन्म पर भविष्यवाणी हुई थी कि कृष्ण के हाथों उसका वध होगा। उसकी माता के आग्रह पर कृष्ण ने
क्षयोपशम सम्यग्दर्शन
औपशमिक सम्यग्दर्शन होने पर मिथ्यात्व की तीनों प्रकृतियां सत्ता में बहुत समय तक रहती हैं। भावों में शुद्धि आने/ लाने से सम्यक्-प्रकृति का उदय करके
मिथ्यात्व
अनित्य को नित्य मानना भी मिथ्यात्व है। क्योंकि तुमने सच्चे देव, शास्त्र, गुरु को तो माना पर उनकी नहीं मानी। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
परिभाषा और दोष
सम्यग्दर्शन आदि की परिभाषा 3 दोषों से रहित होनी चाहिये। दोष…. 1. अव्याप्ति : जो हमेशा/ हर परिस्थिति/क्षेत्र में न रहे जैसे गाय जो दूध
उपाय-विचय
उपाय-विचय (उपाय चिंतन)… इससे तीर्थंकर-प्रकृति का बंध होता है। आत्मबोध से ही सबको दु:खों से छुटकारा मिलता है। सोहम् = सः + अहम् = वह
मारणांतिक समुद्घात
जिन्हें अपने कर्मों पर भरोसा नहीं, उनके मारणांतिक समुद्घात होता है । मुनि श्री सुधासागर जी
नाम कर्म वर्गणायें
शरीर को Maintain करने के लिये भगवान वातावरण से शरीर नाम कर्म वर्गणायें लेते हैं । हम मुख्यत: यह काम कवलाहार से करते हैं ।
संवर
संवर तो पहले गुणस्थान में भी है जब जीव सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़ा हो । दूसरे में 25 प्रकृतियों का संवर है, पर ये असंख्यात
अवगाहनत्व
अवगाहनत्व तो मुझमें/सब द्रव्य में होता है, मैं भी तो छहों द्रव्यों को तथा अनंत जीवों को अपने शरीर में अवगाहना दे रहा हूँ ।
प्रतिक्रमण
मुनियों से भी गलतियाँ होती है (जाने/अनजाने), चौथे काल में भी गलतियाँ होतीं थीं। इसलिए उन्हें प्रत्येक दिन तीन बार प्रतिक्रमण करना होता है ।
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