Category: अगला-कदम

संवर

संवर तो पहले गुणस्थान में भी है जब जीव सम्यग्दर्शन के सम्मुख खड़ा हो । दूसरे में 25 प्रकृतियों का संवर है, पर ये असंख्यात

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अवगाहनत्व

अवगाहनत्व तो मुझमें/सब द्रव्य में होता है, मैं भी तो छहों द्रव्यों को तथा अनंत जीवों को अपने शरीर में अवगाहना दे रहा हूँ ।

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प्रतिक्रमण

मुनियों से भी गलतियाँ होती है (जाने/अनजाने), चौथे काल में भी गलतियाँ होतीं थीं। इसलिए उन्हें प्रत्येक दिन तीन बार प्रतिक्रमण करना होता है ।

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णमोकार बीजाक्षर

7वें गुणस्थान के ऊपर णमोकार स्तवन नहीं, णमोकार का स्तवन शुभोपयोग में होता है, शुद्धोपयोग में बीजाक्षरों का, जो केवलज्ञान में निमित्त बनते हैं। श्रावकों

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वस्तु / द्रव्य / पर्याय

वस्तु मति/श्रुत ज्ञान का विषय है, द्रव्य को आज्ञानुसार मानते हैं, पर्याय को जानते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी

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भय-संज्ञा

संज्ञाओं को समझाने के लिये कहा – “इच्छायें” । पर “भय” इच्छा कैसे हो सकता है ? योगेन्द्र भय देखकर/जानकर, बचने की इच्छा ही तो

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आवीचिमरण

आचार्य श्री विद्यासागर जी किसी को सम्बोधन करने गये, उन्हें णमोकार सुनाने लगे। घरवालों ने एतराज किया – इनका अंत समय थोड़े ही है !

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जीवत्व

जीवत्व पारिणामिक भाव है, जो जीता था/है/रहेगा। पर यह तो गति से गत्यंतर होने पर – कभी 4 प्राण कभी 10, बदलता रहता है ?

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सिद्धांत / अध्यात्म ग्रंथ

सिद्धांत ग्रंथ …. में कर्म-बंध आदि Accurate, एक-एक गुणस्थान के details. अध्यात्म-ग्रंथ ….में  सिर्फ उच्च और विपरीत दशाओं का वर्णन, बीच के वर्णन नहीं; शुद्ध

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56 कुमारियाँ

भवनवासी देवों को “कुमार” कहा जाता है, उनकी ये देवियाँ “कुमारी” । पंचकल्याणकों में बच्चियों को ही 56 कुमारियाँ बनाना परम्परा/व्यवस्था है । ये ब्रह्मचारिणी

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मंगल आशीष

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