Category: अगला-कदम

जीवत्व

जीवत्व पारिणामिक भाव है, जो जीता था/है/रहेगा। पर यह तो गति से गत्यंतर होने पर – कभी 4 प्राण कभी 10, बदलता रहता है ?

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सिद्धांत / अध्यात्म ग्रंथ

सिद्धांत ग्रंथ …. में कर्म-बंध आदि Accurate, एक-एक गुणस्थान के details. अध्यात्म-ग्रंथ ….में  सिर्फ उच्च और विपरीत दशाओं का वर्णन, बीच के वर्णन नहीं; शुद्ध

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56 कुमारियाँ

भवनवासी देवों को “कुमार” कहा जाता है, उनकी ये देवियाँ “कुमारी” । पंचकल्याणकों में बच्चियों को ही 56 कुमारियाँ बनाना परम्परा/व्यवस्था है । ये ब्रह्मचारिणी

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पुण्याश्रव

सराग-संयम, संयमा-संयम और आकाम-निर्जरा मन से होते हैं, बाल तप शरीर से, इनसे ही पुण्याश्रव होता है/देवायु का बंध होता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर

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सूक्ष्म जीव

एक इन्द्रिय सूक्ष्म जीव जैसे वातावरण में गैस । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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स्व/अनंत चतुष्टय

विराम का श्री फल चढ़ाने वालों को स्व-चतुष्टय की प्राप्ति होती है, जो अनंत-चतुष्टय की प्राप्ति में निमित्त बनता है। अनंत-संसार के यात्री को अनंत-चतुष्टय

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आयुकर्म की आबाधा

आयुकर्म की आबाधा = जितनी भुज्यमान(वर्तमान-भव) आयु शेष रहने पर बध्यमान(पर-भव) की आयु बंधे, अंतरमुहूर्त की बध्यमान की आबाधा 100 साल हो सकती है और

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बंध / आबाधा-काल / उदय

कर्म, बंध के समय तथा आबाधा-काल में तो 100% रहता है पर उदय होते-होते 99% उदीरणा/ संक्रमित होकर समाप्त हो जाता है । मुनि श्री

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अग्निकायिक जीव

पंचम-काल के अंत में अग्नि समाप्त हो जायेगी, तब बादर अग्निकायिक जीव किसके आश्रित रहेंगे? 2 पत्थरों को रगड़ते हैं तब अग्नि की चिनगारियां निकलतीं

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क्षायिक दान

सिद्धों में क्षायिक-दान के भाव अनंत काल तक रहते हैं (Direct लेने वाला नहीं है सो प्रकट नहीं)। उनका मात्र ध्यान करके हम निर्भीक हो

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मंगल आशीष

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