Category: अगला-कदम
णमोकार बीजाक्षर
7वें गुणस्थान के ऊपर णमोकार स्तवन नहीं, णमोकार का स्तवन शुभोपयोग में होता है, शुद्धोपयोग में बीजाक्षरों का, जो केवलज्ञान में निमित्त बनते हैं। श्रावकों
वस्तु / द्रव्य / पर्याय
वस्तु मति/श्रुत ज्ञान का विषय है, द्रव्य को आज्ञानुसार मानते हैं, पर्याय को जानते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
भय-संज्ञा
संज्ञाओं को समझाने के लिये कहा – “इच्छायें” । पर “भय” इच्छा कैसे हो सकता है ? योगेन्द्र भय देखकर/जानकर, बचने की इच्छा ही तो
आवीचिमरण
आचार्य श्री विद्यासागर जी किसी को सम्बोधन करने गये, उन्हें णमोकार सुनाने लगे। घरवालों ने एतराज किया – इनका अंत समय थोड़े ही है !
जीवत्व
जीवत्व पारिणामिक भाव है, जो जीता था/है/रहेगा। पर यह तो गति से गत्यंतर होने पर – कभी 4 प्राण कभी 10, बदलता रहता है ?
सिद्धांत / अध्यात्म ग्रंथ
सिद्धांत ग्रंथ …. में कर्म-बंध आदि Accurate, एक-एक गुणस्थान के details. अध्यात्म-ग्रंथ ….में सिर्फ उच्च और विपरीत दशाओं का वर्णन, बीच के वर्णन नहीं; शुद्ध
56 कुमारियाँ
भवनवासी देवों को “कुमार” कहा जाता है, उनकी ये देवियाँ “कुमारी” । पंचकल्याणकों में बच्चियों को ही 56 कुमारियाँ बनाना परम्परा/व्यवस्था है । ये ब्रह्मचारिणी
पुण्याश्रव
सराग-संयम, संयमा-संयम और आकाम-निर्जरा मन से होते हैं, बाल तप शरीर से, इनसे ही पुण्याश्रव होता है/देवायु का बंध होता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर
सूक्ष्म जीव
एक इन्द्रिय सूक्ष्म जीव जैसे वातावरण में गैस । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
स्व/अनंत चतुष्टय
विराम का श्री फल चढ़ाने वालों को स्व-चतुष्टय की प्राप्ति होती है, जो अनंत-चतुष्टय की प्राप्ति में निमित्त बनता है। अनंत-संसार के यात्री को अनंत-चतुष्टय
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