Category: अगला-कदम
आयुकर्म की आबाधा
आयुकर्म की आबाधा = जितनी भुज्यमान(वर्तमान-भव) आयु शेष रहने पर बध्यमान(पर-भव) की आयु बंधे, अंतरमुहूर्त की बध्यमान की आबाधा 100 साल हो सकती है और
बंध / आबाधा-काल / उदय
कर्म, बंध के समय तथा आबाधा-काल में तो 100% रहता है पर उदय होते-होते 99% उदीरणा/ संक्रमित होकर समाप्त हो जाता है । मुनि श्री
अग्निकायिक जीव
पंचम-काल के अंत में अग्नि समाप्त हो जायेगी, तब बादर अग्निकायिक जीव किसके आश्रित रहेंगे? 2 पत्थरों को रगड़ते हैं तब अग्नि की चिनगारियां निकलतीं
क्षायिक दान
सिद्धों में क्षायिक-दान के भाव अनंत काल तक रहते हैं (Direct लेने वाला नहीं है सो प्रकट नहीं)। उनका मात्र ध्यान करके हम निर्भीक हो
भाव
औदायिक भाव – जो भाग्य में होगा मिलेगा; प्राय: निंदनीय (तीर्थंकर प्रकृति आदि को छोड़कर) । उपशम, क्षायिक, क्षयोपशमिक – पुरुषार्थवाद, कर्मों की नियत धारा
विक्रिया
मनुष्य/ त्रियंच/ एक इन्द्रिय, विक्रिया… औदारिक काय-योग से ही करते हैं, क्योंकि उनके वैक्रियक-काय का उदय तो हो ही नहीं सकता । मुनि श्री सुधासागर
धर्म
वस्तु का स्वभाव “धर्म” है और “स्वभाव” हर वस्तु में होता है यानि “धर्म” हर वस्तु में होता है (इसीलिए धर्म अनादि भी है) ।
देशना-लब्धि
गुरु का प्रवचन देशना-लब्धि नहीं, “देशना” भर है । उसे सुनने वाला स्वीकार करे तब वह देशना, “लब्धि” बनती है । गुरु की वाणी से
हिंसा
अविरत सम्यग्दृष्टि 5 स्थावर जीवों की हिंसा करता है । जबकि ऊपरी गुणस्थान वालों से हिंसा हो जाती है, वे करते नहीं हैं । मुनि
मनुष्य भव
मनुष्य भव की उत्कृष्ट स्थिति 47 कोटि पूर्व + 3 पल्य; 47 भव कर्म-भूमि में और अंतिम भोग-भूमि में । इसमें 16 पुरुष + 16
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