Category: अगला-कदम
भाव
औदायिक भाव – जो भाग्य में होगा मिलेगा; प्राय: निंदनीय (तीर्थंकर प्रकृति आदि को छोड़कर) । उपशम, क्षायिक, क्षयोपशमिक – पुरुषार्थवाद, कर्मों की नियत धारा
विक्रिया
मनुष्य/ त्रियंच/ एक इन्द्रिय, विक्रिया… औदारिक काय-योग से ही करते हैं, क्योंकि उनके वैक्रियक-काय का उदय तो हो ही नहीं सकता । मुनि श्री सुधासागर
धर्म
वस्तु का स्वभाव “धर्म” है और “स्वभाव” हर वस्तु में होता है यानि “धर्म” हर वस्तु में होता है (इसीलिए धर्म अनादि भी है) ।
देशना-लब्धि
गुरु का प्रवचन देशना-लब्धि नहीं, “देशना” भर है । उसे सुनने वाला स्वीकार करे तब वह देशना, “लब्धि” बनती है । गुरु की वाणी से
हिंसा
अविरत सम्यग्दृष्टि 5 स्थावर जीवों की हिंसा करता है । जबकि ऊपरी गुणस्थान वालों से हिंसा हो जाती है, वे करते नहीं हैं । मुनि
मनुष्य भव
मनुष्य भव की उत्कृष्ट स्थिति 47 कोटि पूर्व + 3 पल्य; 47 भव कर्म-भूमि में और अंतिम भोग-भूमि में । इसमें 16 पुरुष + 16
बुद्धि/अबुद्धि पूर्वक
अबुद्धि पूर्वक अप्रमत्त क्रियायें हो सकती हैं पर प्रमत्त, बुद्धि पूर्वक ही । सम्यग्दर्शन जाग्रत अवस्था में ही, बुद्धि पूर्वक ही । मोक्षमार्ग पर चलना
नो-कर्म / शरीर-नामकर्म
नो-कर्म, 8 कर्मों में शामिल नहीं । नो-कर्म, कर्म नहीं, कर्म की तरह रागद्वेष में कारण है जैसे प्रिय/अप्रिय शब्द । शरीर-नाम कर्म, 8 कर्मों
शुभोपयोग
सम्यग्दृष्टि के शुभोपयोग या शुभोपयोग से सम्यग्दर्शन ? आगमानुसार सम्यग्दृष्टि को ही शुभोपयोग पर सम्यग्दर्शन होगा, शुभ-क्रियाओं से ही । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
आचरण
पंचम काल के “अंतिम-धर्मात्मा” तीन साल साढ़े आठ माह पहले (पंचमकाल के अंत से) समाप्त हो जायेंगे । उत्तर पुराण 558 प्रश्न : अंतिम धर्मात्मा
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