Category: अगला-कदम
देशना-लब्धि
गुरु का प्रवचन देशना-लब्धि नहीं, “देशना” भर है । उसे सुनने वाला स्वीकार करे तब वह देशना, “लब्धि” बनती है । गुरु की वाणी से
हिंसा
अविरत सम्यग्दृष्टि 5 स्थावर जीवों की हिंसा करता है । जबकि ऊपरी गुणस्थान वालों से हिंसा हो जाती है, वे करते नहीं हैं । मुनि
मनुष्य भव
मनुष्य भव की उत्कृष्ट स्थिति 47 कोटि पूर्व + 3 पल्य; 47 भव कर्म-भूमि में और अंतिम भोग-भूमि में । इसमें 16 पुरुष + 16
बुद्धि/अबुद्धि पूर्वक
अबुद्धि पूर्वक अप्रमत्त क्रियायें हो सकती हैं पर प्रमत्त, बुद्धि पूर्वक ही । सम्यग्दर्शन जाग्रत अवस्था में ही, बुद्धि पूर्वक ही । मोक्षमार्ग पर चलना
नो-कर्म / शरीर-नामकर्म
नो-कर्म, 8 कर्मों में शामिल नहीं । नो-कर्म, कर्म नहीं, कर्म की तरह रागद्वेष में कारण है जैसे प्रिय/अप्रिय शब्द । शरीर-नाम कर्म, 8 कर्मों
शुभोपयोग
सम्यग्दृष्टि के शुभोपयोग या शुभोपयोग से सम्यग्दर्शन ? आगमानुसार सम्यग्दृष्टि को ही शुभोपयोग पर सम्यग्दर्शन होगा, शुभ-क्रियाओं से ही । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
आचरण
पंचम काल के “अंतिम-धर्मात्मा” तीन साल साढ़े आठ माह पहले (पंचमकाल के अंत से) समाप्त हो जायेंगे । उत्तर पुराण 558 प्रश्न : अंतिम धर्मात्मा
आकाश / द्रव्य
आकाश के एक-एक प्रदेश में अनंत द्रव्य (पुदगल) आ सकते हैं, पर एक प्रदेश में एक जीव नहीं रह सकता है क्योंकि प्रत्येक जीव असंख्यात
वर्ग >> निषेक
वर्ग = परमाणु वर्गणा = समान जाति के वर्गों का समूह स्पर्धक = समान जाति की वर्गणाओं का समूह निषेक = भिन्न भिन्न जाति के
कर्मबंध
कुछ कर्म 7वें गुणस्थान में ही बंधते हैं जैसे अहारक-द्विक (शरीर+अंगोपांग), इनका उदय 6 गुणस्थान में । इन कर्मों के बंध का कारण भी राग (संयम अवस्था
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