Category: अगला-कदम

काल के प्रदेश

एक प्रदेशी “काल” को, अप्रदेशी भी कहा है; क्योंकि… 1. काल कभी बहुप्रदेशी नहीं बन सकता है । 2. “एक” का महत्व नहीं जैसे एक

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बंध / निर्ज़रा

बंध तो हमेशा होता ही रहता है, लेकिन जिनेंद्र भगवान की भक्ति करते समय ऐसी प्रकृतिओं का बंध होता है, जो बंध को काटने में

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कृत-कृत वेदक

कृत-कृत वेदक उसे कहते हैं जिसने मिथ्यात्व और सम्यक् मिथ्यात्व का क्षय कर लिया हो और सम्यक् प्रकृति के बहुभाग का भी क्षय कर लिया

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शरीर-नाम कर्म

13वें गुणस्थान के अंत में शरीर के आत्मप्रदेश किंचित कम हो जाते हैं , क्योंकि 14वें गुणस्थान में तो शरीर-नामकर्म का उदय ही नहीं है

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विसंयोजना

अनंतानुबंधी को सत्ता से समाप्त करना विसंयोजना है । उपशम तथा क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि के भी अनंतानुबंधी उदय में तो नहीं, पर सत्ता* में रहती है

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संज्ञायें

सुबह, आहार संज्ञा प्रमुख रहती है, दिन में परिग्रह, शाम को भय, रात्री में मैथुन । मुनि श्री अविचलसागर जी

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सिद्धों में वीर्यत्व

सिद्धों में अनन्त वीर्यत्व, दूसरे पदार्थों के द्वारा प्रतिघात ना हो पाने की अपेक्षा घटित होता है । आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी

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परिणमन

कर्म परमाणुओं का भी परिणमन होता है – स्कंध रूप फिर कर्म-वर्गणायें । जूस* युक्त  जूस रहित । * कर्म-फल देने की शक्ति मुनि श्री

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मंगल आशीष

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