Category: अगला-कदम
आयु की उदीरणा
6ठे गुणस्थान तक आयु की उदीरणा हो सकती है । (यानि अकाल मरण हो सकता है) मुनि श्री सुधासागर जी
कर्मोदय / उदीरणा
कर्मोदय को तो रोक नहीं सकते, उदीरणा को तो रोक सकते हैं । परोसी खीर कर्मोदय है, उस पर दाल का (मसाले वाला) छोंक उदीरणा,
भेद-विज्ञान
भेद-विज्ञान दिखता है । भेद करके ज्ञान करना ही सच्चा विज्ञान/ भेेेद-विज्ञान हैै । भेद पहले बाह्य पदार्थों से, फिर आत्मा और कर्मों में करना
तीर्थंकर-प्रकृति
यह पाप को निर्जरित करती है* । यह भी औदायिक-कर्म है, पर मांगलिक है । जबकि बाकि सब औदायिक-कर्म अमांगलिक होते हैं । आचार्य श्री
जलकाय
प्रासुक जल करने में आरंभिक हिंसा स्थावर जीवों की है, जो श्रावक हर क्रिया (भोजनादि) में करता ही रहता है । पर श्रावक हिंसा करने
विभंगावधि / मरण
विभंगावधि* के साथ मरण नहीं होता । मरण आने पर विभंगावधि छूट जाता है । * प्राकृत-भाषा में विहंगावधि कहते हैं आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
स्व-पर
अन्य द्रव्यों में परिणाम – यदि शुभ तो पुण्य, अशुभ तो पाप । स्वयं में परिणाम – दु:खों का क्षय । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
प्रतिक्रमण
घर में रह रहे व्रती को प्रतिक्रमण करने को नहीं कहा क्योंकि वे प्रायश्चित/प्रत्याख्यान नहीं कर सकते । फिर भी कोई प्रतिक्रमण करता है तो
भाव / उपयोग
भाव (शुभ/अशुभ) मन के, उपयोग आत्मा का । भाव से उपयोग, शुभ उपयोग तो भाव शुभ, पर भाव शुभ तो उपयोग शुभ हो भी या
अभव्य और केवलज्ञान
अभव्य के अंदर भी केवलज्ञान विद्यमान है तभी तो वह केवलज्ञानावरण कर्म बांधता है । बस प्रकट नहीं कर सकता है । मुनि श्री सुधासागर
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