Category: अगला-कदम

प्रतिक्रमण

घर में रह रहे व्रती को प्रतिक्रमण करने को नहीं कहा क्योंकि वे प्रायश्चित/प्रत्याख्यान नहीं कर सकते । फिर भी कोई प्रतिक्रमण करता है तो

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भाव / उपयोग

भाव (शुभ/अशुभ) मन के, उपयोग आत्मा का । भाव से उपयोग, शुभ उपयोग तो भाव शुभ, पर भाव शुभ तो उपयोग शुभ हो भी या

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अभव्य और केवलज्ञान

अभव्य के अंदर भी केवलज्ञान विद्यमान है तभी तो वह केवलज्ञानावरण कर्म बांधता है । बस प्रकट नहीं कर सकता है । मुनि श्री सुधासागर

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क्षुद्र-भव

सबसे छोटी आयु (एक साँस में १८ बार जन्म/मरण) वाले भव को क्षुद्र-भव कहते हैं । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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आकाश और रंग

आकाश वैसे तो अरूपी/वर्ण रहित है । पर यह पुदगल पिंड़ों से भरा हुआ है, सो चाँदनी रात में दूधिया, सूर्य से लाल/पीला, रात को

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भद्र-मिथ्यादृष्टि

मंद-कषायी मिथ्यादृष्टि को भद्र-मिथ्यादृष्टि कहते हैं । ये सत्य को पाना तो चाहते हैं पर पा नहीं पाते । 123 जीव यहाँ से विदेह जाकर,

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अवधि-ज्ञान

अवधि-ज्ञान, भव तथा लब्धि (तप से) -प्रत्यय दोनों प्रकार का । यह द्रष्यात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं, क्योंकि अवधि-ज्ञान के समय मति/श्रुत-ज्ञान पर उपयोग नहीं

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पुण्य

पुण्य की स्थिति पाप-रूप*, सो घटाओ पुण्य से । पुण्य की निर्जरा का कहीं उल्लेख नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी * जैसे पाप-प्रकृतियों की

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साता / असाता

एकेन्द्रिय में असाता की बहुलता होती है । जैसे जैसे इंद्रियां बढ़ती जाती हैं, साता भी बढ़ती जाती है । बहुतायत मनुष्यों में अधिकतर साता

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मंगल आशीष

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