Category: अगला-कदम
निमित्त/उपादान
उपादान अंतरंग कारण, निमित्त उपादान को उभार देता है । मुनि श्री प्रमाण सागर जी
भद्र-मिथ्यादृष्टि
मंद-कषायी मिथ्यादृष्टि को भद्र-मिथ्यादृष्टि कहते हैं । ये सत्य को पाना तो चाहते हैं पर पा नहीं पाते । 123 जीव यहाँ से विदेह जाकर,
अवधि-ज्ञान
अवधि-ज्ञान, भव तथा लब्धि (तप से) -प्रत्यय दोनों प्रकार का । यह द्रष्यात्मक होता है, शब्दात्मक नहीं, क्योंकि अवधि-ज्ञान के समय मति/श्रुत-ज्ञान पर उपयोग नहीं
पुण्य
पुण्य की स्थिति पाप-रूप*, सो घटाओ पुण्य से । पुण्य की निर्जरा का कहीं उल्लेख नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी * जैसे पाप-प्रकृतियों की
साता / असाता
एकेन्द्रिय में असाता की बहुलता होती है । जैसे जैसे इंद्रियां बढ़ती जाती हैं, साता भी बढ़ती जाती है । बहुतायत मनुष्यों में अधिकतर साता
कर्म-बंध
काय-योग से शरीर के योग्य वर्गणायें, वचन-योग से वचन के योग्य वर्गणायें, मन-योग से मन के योग्य वर्गणायें लगातार/automatically ग्रहण होती रहतीं हैं । मुनि
द्रव्य-सम्यग्दर्शन
द्रव्य-लिंगी मुनि के द्रव्य-सम्यग्दर्शन तो होगा क्योंकि वे चर्या निभाते समय जीवों की रक्षा तो कर रहे हैं ना ! पर उनको देखकर दूसरों को
अमूर्तिक-द्रव्य
अमूर्तिक-द्रव्य, इंद्रियातीत पर ज्ञानगम्य (मति,श्रुत से भी) होते हैं । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी मति/श्रुत-ज्ञान, इंद्रियों के माध्यम से ही नहीं, मन के माध्यम और
सूक्ष्म-स्थूल
चक्षु के अलावा चारों इंद्रियों के विषय सूक्ष्म-स्थूल होते हैं । चूंकि इनमें स्थूल Element हैं, इसलिये ये बाधित हो जाते हैं (गंध, शब्द आदि)
वैक्रियक के संहनन उदय
वैक्रियक के संहनन उदय कैसे घटित करें ? योगेन्द्र परमुख उदय में आयेगा, संस्थान के रूप में । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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