Category: अगला-कदम
श्रुतज्ञान
पाँचों ज्ञानों में सिर्फ श्रुतज्ञान ही स्वार्थ/ परमार्थ और द्रव्य/ भावश्रुत के भेद से 2 प्रकार का होता है । द्रव्यश्रुत ज्ञान जब भावश्रुत रूप
कर्मवर्गणा
2 बच्चों को एक सी गुड़ियाऐं लाकर दीं । पहचान कराने एक पर हँसता हुआ तथा दूसरे पर रोता हुआ चेहरा बना दिया । थोड़े
निर्विकल्प समाधि और केवलज्ञान
निर्विकल्प समाधि में ज्ञान – तात्कालिक, क्षयोपशमिक, एकांकी (जब आत्मा का ज्ञान, तब बाहर का नहीं) । केवलज्ञान – शाश्वत, क्षायिक, अनेकांकी होता है ।
मोहनीय / सुख
मोहनीय तो 10वें गुणस्थान के अंत में समाप्त हो जाता है तो अनंत सुख 11, 12, गुणस्थान में क्यों नहीं ? क्योंकि ज्ञान पर आवरण
असंज्ञी का ज्ञान
असंज्ञी का मतिज्ञान भी धारणा तक होता है । वे इंद्रियों की सहायता तथा भाव-श्रुत से (संज्ञाओं के उदय में) सारे काम करते हैं ।
ज्ञेयत्व
1. क्रोध के कारण ज्ञेय पदार्थ का क्रोधी ना होना, जैसे अग्नि से दर्पण गरम ना होना । 2. क्रोध का निमित्त पा आत्मा का
हेय / उपादेय
छूटने की अपेक्षा तो शुद्धोपयोग भी हेय है । पर सब हेय छोड़ने योग्य नहीं होते, क्योंकि शुद्धोपयोग केवलज्ञान में कारण है । ऐसे ही
अज्ञान
अज्ञान केवल दर्शनमोहनीय के कारण ही नहीं होता, बल्कि… चारित्र मोहनीय के कारण भी होता है, जैसे भरत चक्रवर्ती को । आचार्य श्री विद्यासागर जी
योग / ध्यान
ईर्यापथ-आश्रव में योग, ध्यान की अपेक्षा कहा है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
क्षयोपशम भाव
1 से 12 गुणस्थान तक । क्षयोपशम सम्यग्दर्शन के सद्भाव में, क्षयोपशम सम्यग्दर्शन की अपेक्षा – 4 से 7 गुणस्थान में । तीसरे गुणस्थान में
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