Category: अगला-कदम

गत्यागति

गत्यागति का मापदंड़ लेश्या है । इसीलिये मिथ्यादृष्टि भी नौवें ग्रेवियक तक जा सकता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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देवों में प्रमाद

1. चौथे गुणस्थान से ऊपर नहीं जाते । 2. जब जो चाहिये, तुरंत मिलना चाहिये । (प्रायः मिल भी जाता है) आचार्य श्री विद्यासागर जी

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आकाश में उत्पाद/व्यय

आकाश द्रव्य में अलग अलग अवगाहना वाले द्रव्य अलग अलग समय और स्थानों पर स्थान पाते हैं, उससे उत्पाद/व्यय समझना चाहिये । मुनि श्री सुधासागर

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योग-निरोध

सामान्य-केवली भी योग-निरोध करने एकांत में चले जाते हैं/समवसरण में बैठे हों तो समवसरण छोड़ देते हैं क्योंकि समवसरण में कोई शरीर नहीं छोड़ता है

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जीव

निगोदिया – सूक्ष्म भी, बादर भी । निगोदिया अपर्याप्तक भी (एक सांस में 18 बार जन्म मरण सारे जीवों का), पर्याप्तक भी – अंतर्मुहूर्त आयु

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अनुजीवी गुण

अनुजीवी गुण* आत्मा के ही होते हैं । ये हैं – अनंत ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य । मुनि श्री सुधासागर जी * जो आत्मा

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आत्मा / रागादि

आत्मा और रागादि का संबंध अशुद्ध निश्चय नय से कहा जाता है। इसे व्यवहार नय भी कहते हैं। ज्ञानशाला

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जीव के गुण

जीव के गुण – ज्ञान, दर्शन । चारित्र क्यों नहीं कहा ? डॉ. एस. एम. जैन 1) ये मुख्य/चेतन गुण हैं । वैसे तो अनंत

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सासादन में ज्ञान

सासादन में ज्ञान मिथ्याज्ञान क्यों कहा है जबकि मिथ्यात्व तो उदय में आया नहीं ? अनंतानुबंधी के उदय की अपेक्षा से कहा है । पं.

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सच्ची विनय

सच्ची विनय नय-ज्ञान से ही आती है । तब किसी एक पक्ष के प्रति आग्रह नहीं रह जाता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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मंगल आशीष

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