Category: अगला-कदम
मूल / शेष गुण
मुनियों के शेष 7 गुण (निर्ग्रंथ, केशलोंच, खड़े होकर आहारादि), इसके साथ ही 28 मूलगुण बनते हैं जैसे मूलगुण में अपरिग्रह, शेष गुण की निर्ग्रंथता
सम्यग्दृष्टि / भोग / निर्जरा
सराग-सम्यग्दृष्टि के भोगों में निर्जरा, हवा का स्पर्श आदि जैसे भोगों में ही मानें । वीतराग सम्यग्दृष्टि के लिये समयसार में Unconditional भोगों से निर्जरा
अनुदय / संक्रमण
संक्रमण परिवर्तन की क्रिया जैसे साता असाता में, अनुदय संक्रमण करके उदय में आना, जैसे अनंतानुबंधी अप्रत्याख्यानादि में परिवर्तित होकर उदय में आना । पं.
तीर्थंकर प्रकृति उदय
इसकी स्थिति अंत:कोड़ाकोड़ी सागर होती है । आबाधा काल अंतर्मुहूर्त । परमुख उदय तो अंतर्मुहूर्त बाद, पर स्वमुख 13वें/14वें गुणस्थान में । ज्ञानशाला
विग्रह गति में कर्म बंध
कार्मण शरीर की वजह से विग्रह गति में कर्म बंध होता है । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
अनंत बार ग्रैवियक
अनंत बार ग्रैवियक गये, कुछ नहीं हुआ; इससे मुनि पद की भूमिका कम नहीं हुई, मिथ्यात्व(या पुरुषार्थ की कमी) का दोष है । मुनि श्री
मोहनीय स्थिति
मोहनीय की जघन्य स्थिति-बंध 9वें गुणस्थान में, जबकि बाकी कर्मों की 10वें गुणस्थान में, ऐसा क्यों ? 9वें गुणस्थान में मोहनीय इतना कमजोर हो जाता
क्षयोपशम भाव
मिथ्यादृष्टि के भी क्षयोपशम-भाव होते हैं, 1 से 12 गुणस्थानों में मतिज्ञान आदि 4 ज्ञान, 3 अज्ञान, 3 दर्शन, दानादि-5लब्धि, सम्यक्त्व, चारित्र और संयमासंयम ।
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