Category: अगला-कदम
प्रदेश/प्रदेशी
प्रदेश – क्षेत्र की इकाई, प्रदेशी – कितना स्थान घेरता/घेर सकता है । जीव असंख्यात प्रदेशी तथा लोक के असंख्यातवें भाग में ही रहता है
पाप/पुण्य फल
किसी का पुण्य प्रबल है तो आसपास के जीवों के पुण्य की उदीरणा में निमित्त बनता है, पाप पाप की उदीरणा में । ऐसे ही
संबंध
संयोग संबंध भी दो प्रकार का – 1. प्रत्यक्ष भिन्न – शरीर और मकानादि, 2. अप्रत्यक्ष भिन्न – शरीर और आत्मा ।
देवों की पर्याय
भवनत्रिक ही एकेंद्रिय हो सकते हैं, 12 वें स्वर्ग तक के तिर्यंच, उसके आगे मनुष्य ही ।
निद्रा
निद्रा आती तभी है जब साता + निद्रा कर्म का उदय साथ साथ होता है । क्षु. ध्यानसागर जी
अगुरूलघु
अशुद्ध जीवों में यह कर्मरूप होता है और शरीर को अति भारी/हल्का नहीं होने देता, शुद्ध द्रव्यों में यह गुणरूप होता है और षटगुणी हानि
दर्शनावरण/दर्शनमोहनीय
दर्शनावरण – दृष्टि पर आवरण, दर्शनमोहनीय – दृष्टि का उल्टा होना । चिंतन
पर्याय/केवलज्ञान/नश्वरता
अर्थ पर्याय नश्वर है, व्यंजन अनश्वर, जैसे देवों के विमान । केवलज्ञान भी व्यंजन पर्याय है ज्ञान की, इसमें परिणमन व्यवहार से माना है ।
अन्यत्व
जिससे संबंध नहीं, वह अपने आप भिन्न हो जायेगा । मुनि श्री समतासागर जी
आस्रव/संक्लेश
स्व और पर के निमित्त होने वाले सुख या दु:ख यदि विशुद्ध पूर्वक हैं तो पुण्यास्रव होगा, यदि संक्लेश पूर्वक हैं तो पापास्रव होगा ।
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