Category: अगला-कदम
धर्मध्यान/शुक्लध्यान
धर्म ध्यान – कर्म सुखाने के लिये जाडे़ की धूप है, कर्म काटने के लिये मौथरा शस्त्र ( Blunt ) है। शुक्ल ध्यान – गर्मी की
संहनन
विद्याधर, मनुष्य, संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यंच तथा कर्म भूमि के सारे तिर्यंचों के – एक से लेकर 6 संहनन होते हैं। – असंज्ञी तिर्यंच, विकलेंद्रिय, लब्धिपर्याप्तक
विक्रिया
भोगभूमिज अपृथक विक्रिया करते हैं, जैसे – कभी बच्चे, कभी शेर आदि बनते हैं। पति पत्नी अकेले रहते हैं, सो प्रमोद/आनंद/Time pass के लिये ऐसी
आयु बंध
आयु बंध की संभावना,संधि काल में अधिक है इसलिये इन कालों में सामायिक बताया है ।
मिश्र गुणस्थान
मिश्र गुणस्थान में दो भाव नहीं, एक ही भाव होता है; क्योंकि छद्मस्थों के एक समय में एक ही उपयोग लगता है । एक उपयोग
एकेन्द्रिय तथा विकलचतुष्क के सासादन
एकेन्द्रिय तथा विकलचतुष्क (2,3,4,5 असंज्ञी) में उत्पन्न जीव सासादन गुणस्थान में शरीर पर्याप्ति को पूर्ण नहीं कर सकता है, क्योंकि सासादन का काल कम है
सम्यग्दर्शन
अभिप्राय में कषायों का ना होना । (सम्यग्दृष्टि के कषाय तो दसवें गुणस्थान तक रहेगी पर अभिप्राय में नहीं होगी ।) बाई जी
देवों की सामर्थ्य
देव साधारणत: अकाल मृत्यु में निमित्त बन सकते हैं, पर क्षुद्र आयु (1/24 Second) वालों के अकाल मरण में कारण नहीं हैं । क्योंकि यह किसी
छठे सातवें गुणस्थान के समय
दौनों का स्थूल रूप से अंतर्मुहूत काल होता है । वैसे छठा गुणस्थान तीन सैकिंड़ से साठ सैकिंड़ तक रहता है । रात्रि के विश्राम में
हुंड़ावसर्पिणी
हुंड़ावसर्पिणी का प्रभाव अवसर्पिणी में ही क्यों होता है, उत्सर्पिणी में क्यों नहीं ? शायद इसलिये क्योंकि गिरते हुये में ही दोष दिखायी देते हैं,
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