Category: चिंतन
ज्ञात / अज्ञात
पंडित लोग प्राय: अज्ञात/अंदर के विषयों की चर्चा करते हैं जैसे आत्मादि, जबकि साधुजन ज्ञात/बाह्य क्रियाओं की । क्योंकि पंडित प्राय: आचरणों से दूर रहते
विरोध
गतिमान का विरोध ही नहीं, अंतर-विरोध भी होता है । पर दृढ़त/संकल्प इन विरोधों को Stepping Stone बनाकर अपनी प्रगति को बढ़ा देते हैं। जैसे
सज़ावट
दीपावली के अवसर पर घरों के बाहर ख़ूब सजावटें की गयीं, घरों के अंदर बस एक/ दो कागज़ के फूलों की माला ! बाहर की
मृत्यु
मृत्यु के बाद कुछ समय तक शरीर के अवयवों में जान उनके अपने-अपने Cells की Energy से बनी रहती है, जैसे हर दुकान पर कुछ
भगवान / गुरु
अपनी प्रेम करने वालों की सूची में, भगवान/ गुरु को कम से कम नीचे तो रख लो । Top पर तो वे अपने आप आ
छवि
जिसकी छाया पड़ती है जैसे मकान, कार, शरीर आदि, उसी की छवि की चिंता होती है । आत्मा की छाया नहीं पड़ती सो हम उसकी
कोरोना / बुराई / सावधानी
कोरोना से बचने का सबसे प्रभावक उपाय है…. सबमें कोरोना देखना/मानना, उनके सम्पर्क से बचना । 2) बुराईयों से बचने का भी यही उपाय है….
पर्यावरण
पर्यावरण की रक्षा की उत्कृष्ट साधना जैन संतों में दिखती है— साधनों का कम से कम प्रयोग; अधिक से अधिक रक्षा, यदि आहार लेते समय
स्त्री / पुरुष
काँच का बर्तन गिरे तो चकनाचूर, स्टील का गिरे तो सिर्फ दब जाता है/टूटता नहीं है । कारण ! नियति प्रदत्त स्वभाव । चिंतन
बेईमानी
2 प्रकार की – 1 . बाह्य – व्यापार/रिश्वत रिश्तों में समाज/राष्ट्र के प्रति 2. अंतरंग – धर्म के प्रति अपनी आत्मा से और ये
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