Category: चिंतन
धर्म
दया/ क्षमा धर्म कैसे ? धर्म की अंतिम परिभाषा –> वस्तु का स्वभाव ही धर्म है। दया/ क्षमा आत्मा का स्वभाव है, इस अपेक्षा से
विनय / अविनय
विनय करने को कहा, तो ‘अविनय नहीं करना’, कहने की क्या आवश्यकता थी ? सद्गुणों की विनय करें, किंतु कमजोरीयों की अविनय भी नहीं करें।
अभिनय
1. सरल –> सामान्य/ अज्ञानी/ रागी गृहस्थ करता है पर दुःख का कारण। 2. कृत्रिम –> नाटक में… ज्ञानी/ समझदार करता है, सब संतुष्ट। जब
दोष
प्राय: सुनने में आता है अमुक व्यक्ति बहुत बुरा है। सही प्रतिक्रिया –> ऐसा है ! तो उनकी बुराइयों की लिस्ट बना कर देदें। पर
नेतृत्व
आप धर्म/ स्वाध्याय कराते हो तो कर लेते हैं। आप इंजन, हम डिब्बे हैं। सुभाष-नया बाजार मंदिर हरेक में इंजन बनने की क्षमता है। बस
बुद्धिमत्ता / विद्वत्ता
बुद्धिमत्ता विद्वत्ता में अंतर ? सुमन बुद्धिमत्ता में बुद्धि की प्रमुखता, विद्वत्ता में बोधि(विवेकपूर्ण ज्ञान)की प्रमुखता रहती है। चिंतन
साधन / साध्य
शीतल/ प्यास बुझाने वाला जल तो कुएं में ही है। पर उसे पाने के लिये रस्सी, बाल्टी जरूरी हैं। पूजादि भी साधन हैं, आत्मधर्म प्रकट
भोग / सुविधायें
भोगादि से भी कुछ सकारात्मक ले सकते हैं। इनका भी महत्व होता है। भोग/ सुविधाओं को पूरा न भोगने से इच्छाओं का निरोध होता है,
धर्म की साधना
धर्म की साधना का उद्देश्य सत्य को पाना बाद में, पहले झूठ को पहचानना/ छोड़ना होना चाहिये। चिंतन
कर्म
कर्म को “बेचारा” कहा है। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी (बेचारा ही तो है… लम्बे अरसे तक आत्मा में कैद रहता है बिना किसी कसूर के।
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