Category: चिंतन
बुद्धिमत्ता / विद्वत्ता
बुद्धिमत्ता विद्वत्ता में अंतर ? सुमन बुद्धिमत्ता में बुद्धि की प्रमुखता, विद्वत्ता में बोधि(विवेकपूर्ण ज्ञान)की प्रमुखता रहती है। चिंतन
साधन / साध्य
शीतल/ प्यास बुझाने वाला जल तो कुएं में ही है। पर उसे पाने के लिये रस्सी, बाल्टी जरूरी हैं। पूजादि भी साधन हैं, आत्मधर्म प्रकट
भोग / सुविधायें
भोगादि से भी कुछ सकारात्मक ले सकते हैं। इनका भी महत्व होता है। भोग/ सुविधाओं को पूरा न भोगने से इच्छाओं का निरोध होता है,
धर्म की साधना
धर्म की साधना का उद्देश्य सत्य को पाना बाद में, पहले झूठ को पहचानना/ छोड़ना होना चाहिये। चिंतन
कर्म
कर्म को “बेचारा” कहा है। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी (बेचारा ही तो है… लम्बे अरसे तक आत्मा में कैद रहता है बिना किसी कसूर के।
शरीर / आत्मा
क्या हम ऐसी जगह को छोड़ना नहीं चाहेंगे जहाँ सड़न/ बदबू आना शुरू हो रही हो ? यदि हाँ, तो आत्मा मरते हुए शरीर को
अवस्थायें
1. दुष्टता – द्वेष रूप/ गंदा पानी 2. इष्टता – राग रूप/ सादा पानी 3. माध्यस्थता – वीतरागता रूप/ नमी रहित चिंतन
जीवन
डायरी के ऊपर और आखिर में जिल्द होती है। Solid/ निश्चित, इन पर कुछ लिख नहीं सकते। ऊपर बहुत कुछ पहले से लिखा रहता है
आत्मा में अस्पर्शन
आत्मा में अस्पर्शन, स्पर्शन नहीं ! पर वह शरीर को स्पर्श कर रही है ? आत्मा तो स्पर्श करती है, हम उसे स्पर्श नहीं कर
सुख
सुख चाहते हो तो सद्गृहस्थ बनो। सच्चा सुख चाहते हो तो साधु बनो। चिंतन
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