Category: चिंतन
ज़िंदगी
ज़िंदगी Musical Chair का खेल ही है – एक-एक करके कुर्सियाँ ख़त्म होती जाती हैं, एक-एक करके व्यक्तियों का खेल समाप्त होता जाता है। अंत
संसार और संयम
“संसार” में – छोटे “स” से बड़ा “सा” बन जाता है यानि संसार बढ़ता ही जाता है। संयम यानि सं+यम – “स” से संयम/ सावधानी,
अवस्था
युवावस्था में जो मांसपेशियाँ शक्त्ति देती हैं, वही वृद्धावस्था में बोझ बन जाती हैं/शक्त्ति क्षीण करती हैं। चिंतन
उतावली
आप चाहे कितनी भी उतावली कर लो/ दौड़ लो, दुनियाँ अपनी गति से ही चलती रहेगी। हड़बड़ी में काम खराब तथा कर्म बंध भी ज्यादा
कर्मोदय
पुण्यकर्म के उदय से युवावस्था में मांसपेशियाँ आदि शक्ति/ सुंदरता देती हैं। वे ही पुण्य कम होने से वृद्धावस्था में दर्द/ बदसूरती। चिंतन
ताना-बाना
कपड़ों की सारी डिजाइन ताने-बाने पर ही निर्भर करतीं हैं… सुंदर/ असुंदर। जीवन में इनका नाम रागद्वेष है। सुंदर…. अहिंसा, वीतरागता। चिंतन
दृष्टि
दृष्टि 2 प्रकार की…. 1) Minimum को Maximum मानकर Maximum आनंद लेना। 2) Maximum को भी Minimum मानकर Minimum आनंद लेना। चिंतन
सबका
जो परिवार में सबका, वह परिवार का मुखिया; जो समाज में सबका, वह गुरु; जो संसार में सबका, वह भगवान। चिंतन
अच्छा/बुरा बुज़ुर्ग
घर में पेंट करते समय कारीगर ने रंग दिखा कर सहमति चाही। बुढ़ापे में वैसे तो नज़र भी कमज़ोर हो जाती है; दूसरा – अच्छे
याद
सम्बंधियों को याद करोगे तो दु:ख होगा/ कर्मबंध होगा। यह कहना कि उनके गुणों को/ उपकारों को याद करते हैं, यह भी पूर्ण सत्य नहीं,
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