Category: डायरी
मन
विज्ञानानुसार मूड, भावनायें, स्मृतियाँ मन से होती हैं, धर्मानुसार इनका बदलना/नियंत्रण करना हमारे हाथ में है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भगवान पर उपसर्ग
भगवान पर उपसर्ग केवलज्ञान के बाद ही नहीं, ग्रहस्थ अवस्था में भी नहीं होते हैं । क्योंकि… इन्द्र/देव उनकी सेवा/रक्षा में लगे रहते हैं ।
पगलिया
जैसे सकलपारा चासनी में “पग” जाता है/चासनी उसके कण कण में समा जाती है, ऐसे ही हम अपने हठाग्रह/भौतिकता से “पग” गये हैं । अति
संयोग
संयोग बहुतेरे, संयोगी भाव न कर; संयोगी भाव करै तो, संयोगों का दोष नहीं । श्री लालमणी भाई
आयु / कर्म
आयु कट रही है जैसे कैंची कपड़े काटती है, कर्म बढ़ रहे हैं जैसे अलमारी में कपड़े, क्या करें ? कैंची तो अपना कर्तव्य करती
साधुओं की रक्षा
साधुजन अपनी रक्षा खुद नहीं करते ! चाहे उनके पास कितनी भी मंत्रादि शक्तियाँ हों । क्योंकि उसमें दुशमन की हिंसा का दोष लगेगा/ उत्तम-अहिंसा
जय हो
भगवान की “जय हो” के नारे क्यों लगाये जाते हैं ? वे तो सब पर विजय प्राप्त कर चुके हैं ! “जय हो” नारा नहीं, जयघोष है…
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