Category: वचनामृत – अन्य
क्रोध
रे जिया ! क्रोध काहे करै ? वैद्य पर विष हर सकत नाही, आप भखऔ मरे। (दूसरे का विष उतारने को वैद्य के विष खाने
भगवान दर्शन
जिसको पाषाण में भगवान के दर्शन होते हैं, एक दिन उसे साक्षात भगवान के दर्शन हो जाते हैं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
Ritual / Spiritual
Ritual → भगवान को मानना/ धार्मिक क्रियाएँ करना। Spiritual → भगवान की मानना/ धर्मात्मा। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पुरुषार्थ
तुम अगर चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे/ बहुत दूर निकल सकते थे। तुम ठहर गये, लाचार सरोवर की तरह; तुम यदि नदिया बनते
धर्मात्मा
धर्मात्मा पुण्यहीन …. पुजारी, पूरा जीवन गरीबी के साथ धार्मिक क्रियाएँ करता रहता है। धर्मात्मा पुण्यवान …. आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज। मुनि श्री प्रमाणसागर
दिखावे का धर्म
दिखावे के धर्म में पुण्य/ लाभ कम, पर दूसरों पर धर्म की प्रभावना पूरी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
प्रतिक्रिया
प्रतिक्रिया वहाँ जरूर दें जहाँ सुलझने की संभावना हो। जहाँ उलझने की संभावना हो, वहाँ शांत। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
धर्म
धर्म संसार की चकाचौंध से दूर तो नहीं कर सकता। पर धर्मरूपी (धूप का) चश्मा लगाने से आँखें खराब नहीं होंगी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
धर्मध्यान
गृहस्थ हर समय धर्मध्यान करे तो गृहस्थी नष्ट (जैसे साधु की)। धर्मध्यान न करे तो गृहस्थी भ्रष्ट। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
पुण्य / पाप
हिंसा/ झूठादि पाप हैं तो अहिंसा/ सत्यादि पुण्य क्यों नहीं ? अहिंसादि व्रत हैं जो पुण्य से बहुत बड़े/ ऊपर हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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