Category: वचनामृत – अन्य
सुधार
अशुभ निमित्तों से भावनाओं को खराब होने मत दो। ऐसे Object को देखते ही सुधार प्रक्रिया शुरु कर दो। जैसे युवा वेश्या का शव दिख
लोभ
लोभ को पाप का बाप क्यों कहा ? क्योंकि लोभ के लिये अपमान को पी जाते हैं, लोभ से ही मायाचारी आती है, लोभ असफल
मन
मन कोमल होता है सो आकार ले लेता गर्म लोहे जैसा, झुक जाता है तूफानों में, घुल जाता अपनों में/ अपने में। मुनि श्री प्रणम्यसागर
भिखारी
भिखारी वह जो इच्छा रखता हो/ जिसकी इच्छा पूरी न हुई हो। आदर्श भिखारी…. शांति की इच्छा रखने वाला, शांति मिल जाने पर इस इच्छा
मजबूरी / पुरुषार्थ
मजबूरी में Accept भी करना होता है। Adjust करने के लिए पुरुषार्थ ही। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
अवतारवाद
अवतारवाद → ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर। उत्तीर्णवाद → नीचे से ऊपर ही (मनुष्य से भगवान, बनने की प्रक्रिया जैसा जैन-दर्शन में) निर्यापक
मंदिरों में सोना चांदी
मंदिरों में सोना चांदी के उपकरण Avoid करना चाहिये। इनसे चोरी की संभावना से ज्यादा महत्वपूर्ण है, भगवान की मूर्ति की अविनय। निर्यापक मुनि श्री
क्या सम्मान पैसे का ?
देखने में आता है कि पैसे वालों का ही सम्मान होता है, क्या उससे गरीबों का अपमान नहीं होता ? सम्मान पैसे वालों का नहीं
वर्तमान में जीना
भूत में जीओगे तो अटक जाओगे। भविष्य में भटक जाओगे। वर्तमान में नित नया वर्तमान आयेगा। बोर नहीं होगे, नित नया उत्साह आयेगा। निर्यापक मुनि
रति / राग / मोह
रति → झुकाव, राग→ लगाव, मोह → जुड़ाव। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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