Category: वचनामृत – अन्य
पुरुषार्थ
तुम अगर चाहते तो बहुत कुछ कर सकते थे, बहुत दूर निकल सकते थे। तुम ठहर गये, लाचार सरोवर की तरह; तुम यदि नदिया बनते
राग / मोह
पहले राग होता है फिर उसमें विकल्प होते हैं तब वह मोह का रूप ग्रहण कर लेता है। क्षुल्लक श्री सहजानंद जी
शक्ति
आज शक्तिहीन इसलिये क्योंकि कल जब शक्ति थी तब शक्ति को छुपाया/ उसका दुरुपयोग किया था। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी (आज यदि शक्तिमान हो
लोभ
गहरे समुद्र में सांस घुटने से मछलियां नहीं मरतीं पर ज़रा से दाने के लोभ में लाखों जाल में फंसकर जान गँवाती हैं। निर्यापक मुनि
सवाल
सवाल/ संवाद खुद से करोगे तो जवाब मिलेगा, दूसरों से करोगे तो सवाल पर सवाल/ बवाल। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
कर्मोदय
कर्मोदय ऐसा ही है जैसे बांबी से बाहर आया हुआ साँप। यदि आप उसे सहजता से देखते रहे उसमें Involve नहीं हुये तो वह सहजता
कारण / कार्य
साधक-कारण पूरे होने पर भी जरूरी नहीं कि कार्य पूर्ण हो ही जैसे घड़े बनाने के सारे कारण पूर्ण होने पर भी यदि बरसात (बाधक-कारण)
भगवान/गुरु वाणी
भगवान/गुरु वाणी पानी की तरह होती है, पानी पात्रानुसार आकार ग्रहण कर लेता है; भगवान/गुरु वाणी भी पात्र के अनुसार खिरती है। मुनि श्री अरुणसागर
विशुद्धि
विशुद्धि कैसे बढ़ायें? 1. स्व-पर हित वाले कर्म करके 2. सन्तुष्ट/निराकुल रहकर 3. प्रतिकूलताओं में समता रखकर निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
साक्षरता
जो साक्षर नहीं वे भी सच्ची श्रद्धा/ ज्ञान/ चारित्र प्राप्त कर सकते हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Recent Comments