Category: वचनामृत – अन्य
विशुद्धि
विशुद्धि कैसे बढ़ायें? 1. स्व-पर हित वाले कर्म करके 2. सन्तुष्ट/निराकुल रहकर 3. प्रतिकूलताओं में समता रखकर निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
साक्षरता
जो साक्षर नहीं वे भी सच्ची श्रद्धा/ ज्ञान/ चारित्र प्राप्त कर सकते हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सुविधा
सुविधाओं में जितना उलझोगे, दुविधायें उतनी ही बढ़ेंगी। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
विश्वास
विश्वास उबारता है, अविश्वास तथा अतिविश्वास दोनों ही डुबाते हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भेद-विज्ञान
भेद-विज्ञान श्रद्धा तथा ज्ञान से नहीं होता बल्कि प्रज्ञा से होता है। जैसे दूध में से घी को अलग करना सिर्फ ज्ञान से नहीं विधिवत
भाव / ज्ञान
भाव में बहाव है, ध्यान में ठहराव है। ठहराव आयेगा ज्ञान से। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पुण्य/पाप क्रियायें
सिगरेट पीते समय भगवान का नाम लेने से, सिगरेट छूटने की संभावना रहेगी। भगवान का नाम लेते समय सिगरेट पीने से भगवान के नाम छूटने
बौद्ध/जैन दर्शन
बौद्ध दर्शन…न अति काम, न अति कष्ट। जैन दर्शन… न काम, न कष्ट। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
निजप्रकाश
“निजप्रकाश” क्या किसी प्रकाशन में कभी दिखा ? पर ढूंढते हैं – मंदिर, माला, ग्रंथों में। जहाँ देखन हारा है/ जानन हारा है, वहाँ नहीं
ताड़ना
प्रशासक को ताड़ना देनी पड़ती है पर उतनी, जितनी किसान अपने बैल को देता है। शाम होने पर बैल अपने आप किसान के घर आ
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