Category: वचनामृत – अन्य
सुविधा
सुविधाओं में जितना उलझोगे, दुविधायें उतनी ही बढ़ेंगी। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
विश्वास
विश्वास उबारता है, अविश्वास तथा अतिविश्वास दोनों ही डुबाते हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भेद-विज्ञान
भेद-विज्ञान श्रद्धा तथा ज्ञान से नहीं होता बल्कि प्रज्ञा से होता है। जैसे दूध में से घी को अलग करना सिर्फ ज्ञान से नहीं विधिवत
भाव / ज्ञान
भाव में बहाव है, ध्यान में ठहराव है। ठहराव आयेगा ज्ञान से। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पुण्य/पाप क्रियायें
सिगरेट पीते समय भगवान का नाम लेने से, सिगरेट छूटने की संभावना रहेगी। भगवान का नाम लेते समय सिगरेट पीने से भगवान के नाम छूटने
बौद्ध/जैन दर्शन
बौद्ध दर्शन…न अति काम, न अति कष्ट। जैन दर्शन… न काम, न कष्ट। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
निजप्रकाश
“निजप्रकाश” क्या किसी प्रकाशन में कभी दिखा ? पर ढूंढते हैं – मंदिर, माला, ग्रंथों में। जहाँ देखन हारा है/ जानन हारा है, वहाँ नहीं
ताड़ना
प्रशासक को ताड़ना देनी पड़ती है पर उतनी, जितनी किसान अपने बैल को देता है। शाम होने पर बैल अपने आप किसान के घर आ
दूरदर्शिता
इस भव की/ Short Term चिंता करने वाला पैसे के पीछे भागता है, भविष्य के भवों/ Long Term की चिंता करने वाला पैसे से दूर
सार्वजनिकता
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते हैं… “जो काम पत्र से हो जाय उसके लिये पत्रिका का सहारा क्यों ?” मुनि श्री संधानसागर जी
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