Category: वचनामृत – अन्य
दृष्टिकोण
सागर से कहा — देखो ! ये सूरज कितना दुष्ट है, तुमको जलाकर तुम्हारा पानी हड़प लेता है। सागर — नहीं वह मुझ पर और
अहंकार
बादलों से चट्टानों ने शिकायत की… चारों ओर तुम हरियाली कर देते हो, मुझ पर एक घास का तिनका भी नहीं उगाते ! बादल… इसमें
शांति
बिना शांत हुए दूध की परिणति नहीं बदलती*, आत्मा की कैसे बदल सकती है ! शांति पाने का उपाय – धर्म/वीतरागता। मुनि श्री महासागर जी
जीवन-यात्रा
जीवन-यात्रा को सुखद वैसी ही बनायें जैसे सड़क-यात्रा को बनाते हैं- 1. भीड़ भरे शहरों से बचने, Bypass का प्रयोग 2. Bump आने पर Speed
मान
जल से ही पैदा हिमखंड (तरल से कठोर), मान के कारण जल के ऊपर/सिर पर ही रहता है, बड़े बड़े जहाजों के विध्वंस में कारण
भाग्य / पुरुषार्थ
भाग्य, कर्म-भूमि की दुनिया में खाका देता है, उसमें रंग पुरुषार्थ से भरा जाता है (अच्छा/ बुरा, पूरा/ अधूरा)। स्वामी विवेकानंद जी (प्रियजनों का मिलना
उदारतापूर्ण विवेक
एक कलैक्टर ने महाराज जी से साम्प्रदायिक/राजनैतिक समस्याओं के लिये दिशा-निर्देश मांगा। महाराजा रणजीत सिंह का संस्मरण सुनाया – ताज़िया ऊंचा था, बरगद की शाखा
गुणग्राही
गुण अवगुण सब में होते हैं। महत्त्वपूर्ण है कि पहली दृष्टि हमारी गुणों पर पड़ती है या अवगुणों पर। यदि गुणों पर है तो हम
निष्पक्ष
पक्षी ऊंचाइयाँ पाने बारी-बारी से दोनों पंखों को ऊपर नीचे करता है, दोनों को बराबर महत्त्व देता है। यदि एक पंख को ही ऊपर नीचे
खटास
पानी दूध से अच्छे से संबंध निभाता है – पानी का मूल्य दूध के बराबर हो जाता है, दूध को जब ज़रूरत से ज्यादा उबाला
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