Category: वचनामृत – अन्य

धर्म

महावीर भगवान ने सृष्टि के अनुरूप अपनी दृष्टि बनायी। बौद्ध आदि जैसा महावीर भगवान के नाम से कोई धर्म नहीं बना। दया, चारित्र, वस्तु के

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मैं

मैं के साथ विशेषण “अह्म” को जन्म देता है, हटते ही/”मैं” को “मैं रूप” देखते ही “अर्हम” आ जाता है। “अह्म” से “अर्हम” तक की

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गरीब

अमीर भी गरीब तब बन जाता है जब उसे अपने से ज्यादा अमीर की अमीरी दिखने/खलने लगती है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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सही निर्णय/ समय

एक कंजूस सेठ ने सही निर्णय लिया कि वह अपनी सम्पत्ति दान कर देगा। पूछा कब कर रहे हो? मरने के बाद। हंसी का पात्र

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संगठन

टेकड़ी गांव के एक परिवार में 58 सदस्यों में एक चूल्हा। संगठन का रहस्य जानने एक पत्रकार घर के बड़े सदस्य के पास पहुँचा तो

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स्वाभिमान / अभिमान

स्वाभिमान…. पद की गरिमा बचाये रखने की सावधानी। अभिमान…… मान की चाहना। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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प्रसिद्धि

प्रसिद्धि और विवाद एक दूसरे के पूरक हैं। मुनि श्री सौम्यसागर जी

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उत्तम क्षमा

जो जितना सामर्थ्यवान होगा वह उतना क्षमावान भी होगा। जो जितना क्रोध करेगा वह उतना ही कमजोर होगा। कागज़ की किश्ती कुछ देर लहरों से

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दान

सीखे कहाँ नबाब जू , ऐसी देनी देन; ज्यों ज्यों कर ऊँचौ कियो, त्यों त्यों नीचे नैन ? रहीम खान खाना… देनहार कोई और है,

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याचना / प्रार्थना

याचना…. संकट/दु:ख दूर कर दो। प्रार्थना…. संकट/दु:ख में स्थिरता रख सकूँ, ऐसी शक्त्ति दो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मंगल आशीष

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