Category: वचनामृत – अन्य

शब्द

शब्दों की कीमत नहीं होती, पर उनके सही/ग़लत प्रयोग से आपकी कीमत बढ़/घट जाती है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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ऊब

ऊब से बचने के उपाय…. 1. रुचि पैदा करें 2. स्वीकारें 3. संकल्प पूरा करें 4. लक्ष्य के प्रति आदर भाव रखें ऊबना है तो

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पूजादि

पूजा – अष्टद्रव्य (पूजा सामग्री) से भक्त्ति प्रकट करना। आराधना – पूजा + अतिरिक्त आलम्बन से गुणों का ध्यान। प्रार्थना – हृदय के उद्गार प्रकट

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श्रम

क्रम – ‘क’, ‘ख’, ‘ग’, ‘घ’। पहले ‘क’ = कर्म, फिर ‘ख’ = खाना, ‘ग’ = गाना, ‘घ’ = घंटा, जीवन झंकृत हो जायेगा। पर

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कर्मोदय / पुरुषार्थ

कर्मोदय सताता/भटकाता नहीं कुछ समय के लिये अटका सकता है। कर्मोदय में पुरुषार्थ की कमी/रागद्वेष करने से भटकन/दु:ख होता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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काल का महत्त्व

हनुमान जब सीता को ढूँढ़ने लंका जा रहे थे तब उन्होंने पूछा – लंका को पहचानूँगा कैसे ? जहाँ लोग सूर्योदय के बाद भी सोते

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मार्ग

मार्ग – दो 1. साधना – दृढ़ इच्छा वालों के लिये, कुछ लोग ही कर पाते हैं। अपने भुजबल से नदी पार करना। 2. आराधना

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अनुरूप चाहना/बनाना

अनुरूप चाहने में बुराई नहीं पर हरेक को/ हर घटना को अपने अनुरूप बनाना, गलत सोच/ दु:ख का कारण है। हर व्यक्ति अपने-अपने स्वभाव से

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दिव्य-दृष्टि

द्रोणगिर में हम 4-5 बहनों के आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रथम दर्शन के समय, मैने आ. श्री से कुछ व्रत/नियम के लिये प्रार्थना की।

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गृहस्थ / साधु

तकलीफें बहुत, सो रहना नहीं; इस युग में मंज़िल (मोक्ष) मिलना नहीं। आचार्य श्री विद्यासागर जी – “अब और नहीं, छोर चाहता हूँ। घोर नहीं,

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मंगल आशीष

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