Category: वचनामृत – अन्य
करुणा
व्यक्ति दु:खी तो अपने कर्मों से होता है, फिर उस पर करुणा क्यों और कैसे आ सकती है ? प्रथम दृष्टि से कर्म फल पर
प्रवृत्ति
राजा ने (निमित्त) ज्ञानी से पूछा – मेरा कुल कैसा है ? कुलीन नहीं है। पता लगाया गया, राजा एक चरवाहे का बेटा था, जो
ऊब
ऊब – दो प्रकार की – 1. नकारात्मक – आलसी प्रवृत्ति वालों में 2. सकारात्मक – क्रियाशील/परिवर्तन को महत्त्व देने वाले की मुनि श्री प्रमाणसागर
मर्यादा
जब कोई मर्यादा (औकात) से ज्यादा बातें करने लगे/परछायीं कद से ज्यादा बड़ी हो जाये तब जान लो – सूरज ड़ूबने वाला है। मुनि श्री
धन / पाप / दान
धन तो सबने मिलकर भोगा, समाप्त कर लिया। बचा क्या ? धन कमाने में कमाया पाप, यह हमें अकेले ही भोगना होगा। इसका कुछ अंशों
मलद्वार
नौ मलद्वारों में से, 2 One way हैं, 2 पर Natural Filters लगे हैं(आँखें), बाकी 5 Direct Highway (मुंह, नाक*, कान) हैं, इसलिये इन 5
दु:ख
अपने और अपनों के दु:ख क्यों ? मोह अज्ञान से। कैसे ? ख़ुद और सबको शरीर माना, आत्मा को नहीं। बचने का उपाय ? वैराग्य
अच्छा / बुरा
अच्छा वह जो बुराई छोड़ने के प्रयास में लगा है। अच्छा बनने के लिये पहले बुरों/बुराइयों से दूर रहना होगा। साफ कपड़े वाला गंदे कपड़ों
विवेक
Call Centre में सामने वाली Party कैसा भी व्यवहार करे, Call Centre वाले पूरी नम्रता/शांति से व्यवहार करते रहते हैं। कारण ? उन्हें मालुम है
पाप का प्रक्षालन
कलकत्ता का बेलगछिया का भव्य जैन मंदिर 26-27 बीघा के उपवन के बीच, शहर के मध्य स्थित है। बनवाने वाले सेठ हुलासीराम बड़े अय्याश थे।
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