Category: वचनामृत – अन्य

दान के भाव

1. धर्म के पात्र…………… आत्म विशुद्धि के निमित्त 2. दया/सहायता के पात्र… पुण्य अर्जन के निमित्त मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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बदलाव

युवा ट्रेन में रो रहा था। कारण ? गलत ट्रेन में बैठ गया था। ट्रेन बदल क्यों नहीं लेता ? क्योंकि इस ट्रेन में सीट

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संसार / परमार्थ

जब तक संसार में हो – भोगो मत पर भागो भी मत, भाग लो – Adjust करके। जो संसार में Adjust नहीं कर पाते, वे

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सत्य

वैसे तो सत्य अखंड है पर व्यवहार चलाने में खंडित हो जाता है जैसे सत्य यह है कि रोटी पूर्ण होती है पर माँ खंडित

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घर वापसी

गायें शाम को लौटतीं हैं। उस बेला को गोधूलि कहते हैं। वह शुभ मानी जाती है, क्योंकि गायें अपने प्यार को सँजो कर बच्चों से

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कर्म-फल

यह दो प्रकार का है – 1. बाह्य – जो दिखता भी है – वैभव के रूप में। 2. अंतरंग – जो दिखता नहीं, पर

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कमज़ोरियाँ

एक कम्पनी की Board Meeting में Director ने कम्पनी की Growth पर चर्चा ना करके, कम्पनी के Fail होने के कारणों पर चर्चा की। कहा

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स्वावलम्बन

सांप के भय से गुरु से गरुडी मंत्र मत पढ़वा लेना, वरना रस्सी ही सांप बन जायेगी। थोड़ी बीमारी का ज्यादा रोना डॉक्टर से मत

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साधु

साधु देखते हुये भी देखता नहीं, या उसमें कुछ और देख लेता है, जैसे कोई काम की वस्तु। सुनते हुये भी सुनता नहीं, या और

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निमित्त और पुरुषार्थ

निमित्त तो दियासलाई की काढ़ी के जलने जैसा है: उतने समय में अपना दीपक जला लिया, तो प्रकाशित हो जाओगे; वर्ना गुरु ज़्यादा देर रुकते

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मंगल आशीष

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