Category: वचनामृत – अन्य

क्रोध

कमजोर ही अपने से कमजोर पर क्रोध करता/ कर सकता है। क्रोध करने वाले को शक्तिशाली नहीं कहा जा सकता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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परनिन्दा / बुराई

गटर का ढक्कन तभी उठाओ, जब गटर को साफ कर सकने की सामर्थ हो। इसी तरह परनिन्दा/ दूसरों की बुराई तब करो जब बुराइयों को

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स्वतंत्रता

स्व के तंत्र* में बंधना स्वतंत्रता है। अगर अपने तंत्र में नहीं बंधेंगे तो स्वछंदता आ जायेगी। मुनि श्री प्रमाणसागर जी * नियम/ व्यवस्था/ अनुशासन

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स्व/ पर/ परम

आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते थे – “स्व” को साफ करो, “पर” को माफ करो, “परम” को याद करो। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी

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शरीर

शरीर …. कर्म शिल्पकार की रचना है। मिट्टी की इमारत कब ढल जाए पता नहीं, फिर गुमान क्यों ? ये चंद साँसों के पिल्लर पर

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आकुल / व्याकुल

आकुल अच्छे कामों में व्यवधान से, व्याकुल बुरे कामों में व्यवधान से। मुनि श्री मंगल सागर जी

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समय

स्व-समय(आत्मा) में लीन रहने वालों का समय(काल) उनका अपना हो जाता है, समय पर मालकियत हो जाती है। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (31 जुलाई)

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अनुभूति

जियें ऐसे कि जीवत्व की अनुभूति हो ! मरें तो ऐसे कि अमरत्व की अनुभूति हो। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (30 जुलाई 2024)

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मोक्ष मार्ग

जहाँ दिट्ठो वहाँ पिट्ठो, यही मोक्ष को चिट्ठो। जहाँ दृष्टि, वहाँ पीठ कर लो। आज तो हम एक कदम मोक्ष की ओर बढ़ा रहे हैं,

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मन

उच्छृंखल घोड़े को साध दिया जाय तो बिना लगाम खींचे अपने घर को वापस आ जाता है। ऐसा ही मन है। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी

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मंगल आशीष

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