Category: वचनामृत – अन्य
खंडित मूर्ति
मंदिर परिसर में खंडित मूर्तियाँ नहीं रखनी चाहिये । उन्हें संग्रहालयों में भेज देना चाहिये । मुनि श्री सुधासागर जी
बोल
मनचाहा बोलने के लिये, अनचाहा सुनने की क्षमता भी होनी चाहिये । मुनि श्री प्रमाणसागर जी (यश के प्रश्न के जवाब में)
संत / साहित्य
संत —- जिनसे मन शांत हो । साहित्य – जिनसे हित सधे । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मुसीबत
दुश्मन चाहे मनुष्य रूप में हो या कर्मरूप में, वह तो अपना स्वार्थ देखेगा ही । आप उसे यह नहीं कह सकते कि… हे !
Object
मन का Waste बचाकर,Invest करो । Object से हटकर, Subject पर जाओ । Object तो एक के बाद एक आते ही रहते हैं, उनमें हम
असंयम
संघ की आर्यिका माताओं के दीक्षा-दिवस पर आर्यिका विज्ञानमति माता जी अपनी दीक्षा के समय के भावों को व्यक्त करते हुए कहा… “उस समय मुझे
अंतिम मंज़िल
राजा को चंदन की लकड़ी में, रंक को कंडों में जलाया जाता है । पर दोनों की राख एक सी, न चंदन वाली में सुगंध,
प्रेम
जिससे जितनी बातें करते हो, उससे उतना ही प्रेम हो जाता है । भगवान/गुरु से कभी बातें की ? मुनि श्री अविचलसागर जी
भगवान / कर्म
भगवान को कर्ता मानने वाले कहते हैं – “ऊपर वाला पांसा फेंके, नीचे चलते दांव”, कर्मों पर विश्वासी कहते हैं – “अंदर वाला पांसा फेंके,
Real Thinking
सामर्थ्य न होने पर, किसी कार्य को न कर पाने की सोच,Negative Thinking नहीं, Realistic Thinking है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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