Category: वचनामृत – अन्य

घ्रणा

कुबड़े से घ्रणा करने में बहुत दोष है, क्योंकि उसके शरीर से घ्रणा की जा रही है । हत्यारे से घ्रणा करने में कम दोष

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आत्मा / भगवान

जो शरीर में आत्मा नहीं देख पाते, वे ही मूर्ति में भगवान नहीं देख पाते । और वे ही शरीर/भोगों को पुष्ट करने में लगे

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आधार

जलते हैं घी/बाती, नाम दीपक का क्यों ? क्योंकि दीपक, घी/बाती को आधार देता है, और आधार का महत्व क्रियावान से अधिक होता है ।

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मंदिर में शिक्षा

स्कूल में पढ़ाई, बाहर/आगे जाकर कमाई करने के लिये होती है । मंदिर में शिक्षा भी मंदिर के बाहर उपयोग के लिये । मुनि श्री

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शिक्षक / गुरू

शिक्षक वह सिखाता है, जो वह जानता है, गुरु वह उपदेश देता है, जो वह होता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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जीने का उद्देश्य

इस और अगले जन्म को सार्थक बनाना ही जीने का उद्देश्य होना चाहिये । आ. श्री महाप्रज्ञ जी इस जीवन को विषय-भोगों से वंचित रख

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संस्कृति

क्रिया और विचारों का संस्कार ही संस्कृति है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मान

मान तभी आता है, जब हम मान लेते हैं (कि हम बड़े हैं) । निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी

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अधूरे

हम अधूरे क्यों ? हम दृश्य को ही जानते/जानना चाहते हैं । जबकि अदृश्य, दृश्य से अनंतगुणा है । मुनि श्री महासागर जी

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रिश्ते

क्या रिश्ते स्वार्थ पर आधारित होते हैं ? रिश्ते स्वार्थ से नहीं बनते, स्वार्थ से तो टूटते हैं । जो स्वार्थ पर आधारित होते हैं,

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मंगल आशीष

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