Category: वचनामृत – अन्य
समाज सेवा
समाजसेवा क्यों करें ? समाज की वज़ह से ही हम असमाजिक तत्व बनने से बचे हुये हैं, इसीलिये समाज की सेवा करें । मुनि श्री
साधना
संसार में मन की बात ज़ुबान पर ना आने देना, ज़ुबान की बात/शरीर पर ना आने देना, तथा धर्म में मन से वचन, वचन से
धर्मात्मा
रावण 8 घंटे पूजादि करता था, पर बाकि 16 घंटे भगवान के बताये मार्ग से विपरीत आचरण करता था, इसलिये दुर्गति पायी । मुनि श्री
लापरवाही
दुर्घटनायें मोड़ों पर कम, सीधी सड़कों पर अधिक होती हैं । काँटे वहाँ ज्यादा लगते हैं जहाँ फूल बिछे होते हैं । दु:ख सुखों के
गुरु और साधुता
सच्चा गुरु मिल जाये तो साधुता निभाना आसान हो जाता है । पर सच्चे गुरु की थाह लेना वैसा ही है जैसे कोई रस्सी में
ज्ञान
छोटा सा जुगनू पूरे आकाश के अंधकार पर भारी पड़ जाता है । हमारे हृदय का अज्ञान भी ज्ञान के दीपक से समाप्त हो सकता
संस्कार
बच्चों को याद करायें – 1. पाप से भय 2. संवेदनशीलता 3. धर्म कुल का गौरव मुनि श्री प्रमाणसागर जी
बड़ा पाप/पुण्य
पाप से भी बड़ा पाप है – “पाप को स्वीकार ना करना” । स्वीकार करते ही वह प्रायश्चित बन जाता है, तप कहलाता है ।
देवालय
जिस देह में समृद्ध आत्मा हो, उस देह को देवालय कहा है, दिवालिया देह को नहीं । आत्मा का दर्शन करना है तो दर्पण पर
सम्बोधन
राम को ईशांतराज (भील) “तू” से संबोधन कर रहे थे । लक्ष्मण को अच्छा नहीं लगा । राम ने कहा – इन्होंने अपनी (भक्त) और
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