Category: वचनामृत – अन्य
गुरुदर्शन
चोर साधुओं के पास इसलिये नहीं जाते, क्योंकि उनके पास वह सब नहीं है जो उन्हें चाहिये । यदि हम भी उनके पास नहीं जा
भूत / भविष्य / वर्तमान
भूत को Dustbin मानो, भविष्य को Notice Board, और वर्तमान को Writing Pad(for Notice Board) (पर WritingPad Dustbin से मत लेना-पुश्किन) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
शुद्धता / उपयोगता
बर्तन बाहर से मांजने पर शुद्ध दिखता है, पर उपयोगता अंदर की शुद्धता से ही होती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मोरपंख
मोर मांसाहारी पर पंख साधुओं की पीछी में क्यों ? गाय अशुद्ध खाती है, पर दूध शुद्ध । उसका ही मल अशुद्ध और मांस अभक्ष्य
ज़िंदा / मुर्दा
लोग ज़िंदों को गिराते हैं, मुर्दों को उठाते हैं, ये कैसे लोग हैं ? जो ज़िंदा को गिराते हैं वे मुर्दा होते हैं* और मुर्दा
आचरण
प्राय: आचरण का अभिप्राय अच्छे काम करने से लिया जाता है, पर करने से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है, क्या नहीं करना चाहिए । मुनि श्री
अधर्म
वो क्रियायें जिन्हें करते करते ऊब जायें, फ़िर चाहे वे क्रियीयें धार्मिक ही क्यों ना हों । मुनि श्री सुधासागर जी
सुनना
माईक की तरह नहीं सुनना, इधर सुना उधर बाहर । मुनि श्री निर्वेगसागर जी
Busy
Busy रहना बुरा नहीं, Busy मानना बुरा है, Busy जैसा व्यवहार करना बुरा है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
नौकरी
भगवान ने गृहस्थ के षटकर्मों में खेती, शिल्प, लेखनादि बताये हैं पर नौकरी नहीं बतायी । ये तो दासता है, इसी को अधम चाकरी कहा
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