Category: वचनामृत – अन्य

मरण / उद्यापन

इन अवसरों पर भेंट/भोजन नहीं ग्रहण करना चाहिये, उनके परिवार/व्रती को देना चाहिए । मुनि श्री सुधासागर जी

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साधन / साध्य

देव, गुरू, शास्त्र को साधन ही नहीं, साध्य बनाएँ । मुनि श्री सुधासागर जी

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साधना

परिस्थिति को मन:स्थिति न बनने देना । क्षु. श्री ध्यानसागर जी

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पहचान

संबंधों से अपनी पहचान मत बनाना, वरना संबंध समाप्त होते ही आप ज़ीरो बन जाओगे । क्षु.श्री ध्यानसागर जी

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श्रद्धा

जहाँ मन टिक जाए, उस पर श्रद्धा होती है । जिस पर श्रद्धा होती है, उस पर मन लगता है । क्षु. श्री ध्यानसागर जी

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सुधारना

सुधारने से नहीं, (ख़ुद) सुधरने से सुधरते हैं । ऐसे सुधरे मुड़ जाते हैं, फिर मुड़कर नहीं देखते हैं । क्षु. श्री ध्यानसागर जी

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संस्कार

पानी जब तक हाथ में है तब तक कैसा भी आकार दे दो; छूटने के बाद क्या आकार लेगा, कोई नहीं जानता । श्री रत्नसुंदर

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दु:ख का कारण

एक महिला, जहाँ भी उँगली रखती, उसे ही कोसती क्योंकि उसकी उँगली में दर्द होने लगता था, उँगली में फ्रैक्चर था । तो, दर्द का

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पाप / पुण्य / मुक्ति

प्राय: धार्मिक जन पाप-पुण्य/नरक-स्वर्ग की बातें करते हैं । ज्ञानी, पाप-पुण्य से परे, मुक्ति की । मुनि श्री सौम्यसागर जी

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मन

मन का स्वभाव सकारात्मक है । उसे मना करोगे तो वह मानेगा नहीं, उसे बताओ कि उसे क्या करना है, वह करेगा । तब मन

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मंगल आशीष

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October 8, 2017

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