कल्पनाओं में दूर देश बैठे प्रियजनों का स्पर्शन अनुभव करके रोज आनंदित होते हैं।
गुरुओं/ भगवान (अरहंत, सिद्धों) का क्यों नहीं है !

चिंतन

रूपक…
भगवान महावीर अस्थि-गाँव (हत्यारे लोगों का) में जा कर ध्यान मग्न हो गये।
लोगों के अपशब्दों से विचलित न होने पर उनसे कहा…इतना मारेंगे कि ज़िंदगी भर याद रखोगे।
भगवान… याद रखने के अच्छे तरीके भी हो सकते हैं, जिसमें दोनों को याद रखा जायेगा। कुछ तुम अच्छा करो, कुछ मैं अच्छा करूँ।

ब्र.डॉ.नीलेश भैया

चाणक्यादि ने प्रण लेते समय चोटी में गाँठ बाँधी। द्रौपदी आदि ने चोटी खोली। उल्टी क्रियायें क्यों ?
पुरुषों की चोटी खुली रहती हैं, स्त्रियों की बंद। Unusual दिखने पर खुद को प्रण याद रहा आयेगा तथा दूसरे भी टोकते रहेंगे/ याद आता रहेगा।

चिंतन

कबाड़ी ने कबाड़ सामान खरीदते समय एक भगवान का फोटो निकाल दिया।
कारण ?
आप बड़े आदमी है, आप भगवान को बेच सकते हैं, मैं तो गरीब जादमी हूँ, भगवान को खरीदने की मेरी औकात कहाँ!!

(सुरेश)

ठंडे देश की एक चिड़िया देश छोड़ न पायी। ठंड में उसके पंख अकड़ गये, ज़मीन पर गिर गयी।
एक गाय ने उसके ऊपर गोबर कर दिया। गरमाहट से उसमें गति आ गयी और वह बोलने लगी। बिल्ली ने सुना गोबर हटाया और उसे खा गयी।
सीख –
1. तुम्हारे ऊपर हर गोबर फेंकने वाला दुश्मन नहीं होता तथा मुसीबत से निकालने वाला मित्र नहीं होता।
2. मुसीबत के समय वचनों पर नियंत्रण रखें।

(अपूर्व श्री)

व्रती शब्द वृत से बना है, जिस‌की परिधि हो। परिधि को भी छोटा करते जाते हैं।
लगातार सुधार के कारण व्रत बोझल/ Boring नहीं लगते/ उत्साह बना रहता है। सुधार काय में तो होना कठिन है सो मन और वचन सुधारें।

ब्र.डॉ.नीलेश भैया

अक्षर/ शब्दों को लिखकर काटने/ मिटाने में भाव-हिंसा तथा अंकों को काटने/ मिटाने में ज्ञान के प्रति अविनय है।

मुनि श्री मंगल सागर जी

रोना हो तो हिंदी में, हंसना हो तो हिंदी में
जीना हो तो शांति से, मरना हो तो शांति से।

शांतिपथ प्रदर्थक

(शांति तभी मिलेगी जब हम अपने में/ अपनी भाषा/ अपने धर्म में आ जायेंगे)

1. गृहस्थ बार-बार हानि होने पर भी धनोपार्जन का पुरुषार्थ करता रहता है।
2. साधु हीन पुरुषार्थ होते हुए भी परीषह (कठिनाइयों) जय करने में महान पुरुषार्थ करते रहते हैं।

क्षु.श्री जिनेंद्र वर्णी जी

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