वचन 2 प्रकार –
1. शिष्ट प्रयोग
2. दुष्ट प्रयोग
कुल 12 प्रकार के, इनमें 11 दुष्ट प्रयोग, जैसे अव्याख्यान (टोकना), कलह।
शिष्ट प्रयोग – सम्यग्दर्शन वाक्।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीव काण्ड: गाथा – 366)

तो समझदारी मौन रहने में ही होगी ना।

चिंतन

संसार में प्राप्त को पर्याप्त मानने को कहा, तो परमार्थ में ?
दोनों में एक ही सिद्धांत… अपनी-अपनी क्षमतानुसार, आकुलता रहित, पूर्ण पुरुषार्थ।
दोनों ही क्षेत्र में नकल/ प्रतिस्पर्धा नहीं, हाँ ! किसी को आदर्श बनाने में बुराई नहीं।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

गुफा ने सूर्य को दुखड़ा रोया… हर जगह/ हर समय अंधकार ही अंधकार क्यों है ?
सूर्य देखने आया पर गुफा का हर कोना/ हर समय प्रकाशित दिख रहा था।
हम अपने-अपने दुःख मन में संजोये रहते हैं पर कुछ लोग अपने स्वर्ग अपने कंधों पर लेकर चलते हैं, जहाँ-जहाँ भी वे जाते हैं स्वर्ग बन जाता है।

(डॉ.सुधीर- सूरत)

(Some people bring Happiness wherever they go,
Others whenever they go)

दया/ क्षमा धर्म कैसे ?
धर्म की अंतिम परिभाषा –> वस्तु का स्वभाव ही धर्म है।
दया/ क्षमा आत्मा का स्वभाव है, इस अपेक्षा से दया/ क्षमा धर्म हुआ।

चिंतन

धम्मो वत्थुसहावो,
खमादिभावो दसविहो धम्मो।
रयणत्तयो च धम्मो,
जीवाणु रक्खणो धम्मो।।
-कार्तिकेयानुप्रेक्षा
धर्म क्षमा आदि दशविध ( दस लक्षण वाला) है।
यह दूसरी परिभाषा हुई।

कमल कांत

भटके हुए पथिक को श्रद्धा साधु पर ही होगी।
वही रास्ता किसी गुंडे ने बताया हो पर उस पर नहीं होगी।
रास्ते पर आगे चल कर कोई परिचित भटका भी सकता है, स्थिरता तो अपने अनुभव से ही आयेगी।

क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी (शांतिपथ प्रदर्शक)

पूरा जीवन भगवान से प्रार्थना करते रहे…. (शांति दो – शांति दो)
शांति मिली ?
नहीं।
मिलती तब जब भगवान ने अशांति दी होती।
अशांति तो हमने खुद पैदा की है, हमको ही तो इसका समाधान ढ़ूंढ़ना होगा!

श्री दलाई लामा

जो अंतर्ध्वनि/ धर्म के अनुसार कियायें करते हैं जैसे परोपकार/ दया, उनकी आत्मा शांत/ आनंदित रहती है;
विपरीत कियायें करने वालों की अशांत, तभी तो Lie Detector की पकड़ में आ जाते हैं।

क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी (शांतिपथ प्रदर्शक)

एक लोभी सेठ ने साधु की झोली में एक रुपया डाला। शाम को उसकी तिजोरी में एक हीरा बन गया|
अगले दिन सेठ ने झोली में बहुत सारे रुपये डाल दिये। शाम को कुछ नहीं हुआ। दुखी सेठ को सेठानी ने कहा –
सबक लीजिये → “त्याग फलता है, लोभ छलता है।“

रेनू जैन- नया बाजार मंदिर, ग्वालियर

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