आत्मा तो हमेशा जानती है कि सही क्या/ गलत क्या है।
मनुष्य के सामने चुनौती तो मन को समझाने की होती है।
(सुरेश)
जन्म/ मरण में अच्छा/ बुरा लगने से सूतक लगता है।
अच्छा/ बुरा लगने से सुख/ दु:ख होता है। सुखी/ दु:खी होने से शरीर में रिसाव होता है जैसे स्वादिष्ट पदार्थ की याद आते ही मुंह में पानी/ रिसाव आने लगता है। रिसाव से शरीर में अपवित्रता होती है, इसलिये भी सूतक लगता है।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
आभूषण में सोने और खोट की पहचान करना भेद विज्ञान है। महत्व सोने का ही नहीं, खोट का भी होता है क्योंकि खोट के बिना आभूषण बन ही नहीं सकता। जैसे खलनायक के बिना नायक की पहचान नहीं।
बुद्धिमत्ता विद्वत्ता में अंतर ?
सुमन
बुद्धिमत्ता में बुद्धि की प्रमुखता, विद्वत्ता में बोधि(विवेकपूर्ण ज्ञान)की प्रमुखता रहती है।
चिंतन
जो जवान था,
वह बूढ़ा होकर,
पूरा* हो गया।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(*सिर्फ उम्र पूरी करके पूरा होना है या गुणों से परिपूर्ण होकर पूरा होकर जाना है!- श्री कमल कांत )
शांति के लिये –>
1. अभिलाषा छोड़नी होगी।
2. समता धारण।
3. व्यापकता।
4. निस्वार्थता।
5. पारमार्थिक शांति के लिये सर्वलोकाभिलाषा का त्याग।
क्षु. श्री जिनेन्द्र वर्णी जी (शांतिपथ प्रदर्शक)
“मैं हूँ” ऐसा सोचने/ मानने में हानि नहीं।
“मैं कुछ हूँ” अभिमान दर्शाता है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
किसी को सबक सिखाने की ज़िद न करो, कोई नहीं सीखता, क्योंकि सबक सिखाये नहीं जाते,सीखे जाते हैं!
(सुरेश जैन- इंदौर)
क्षमता कैसे बढ़ायें ? (युवा ने आचार्य श्री विद्यासागर जी से पूछा। उस सभा में गृहस्थ, ब्रम्हचारी तथा मुनिगण भी थे)।
सो आचार्य श्री का एक उत्तर सबके लिये होना था।
आ. श्री –>
1. लोक-संपर्क से बचो।
(युवा की पढ़ाई सही होगी, गृहस्थ के घर की बात बाहर नहीं जायेगी, व्रतियों की साधना अवरुद्ध नहीं होगी)।
2. Over Working से बचो।
3. शिथिलता लाने वाले साधनों से बचो।
मुनि श्री विनम्रसागर जी
“Don’t talk unless you can improve the silence.”
( J. L. Jain ) Jorge Luis Borges
कुछ लोग जिधर की हवा,
उधर ही चल पड़ते हैं !
हालांकि…
ये काम कचरे का है।
(सुरेश)
बाह्य मौन —-> मौन रखना;
अंतरंग मौन –> मौन रहना (बोलने के भाव ही न आना)।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
साधनों के अतिभोगी न बनो,
जरा योगी भी बनो,
ताकि रोगी बनने से छुटकारा मिल सके !
“The poor spend most of their money,
the middle-class save most of their money,
& the wealthy invest most of their money;
hence, they are poor, medial & wealthy,
(J.L.Jain)
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