🌻🌻महापर्व पर्युषण🌻🌻
नहीं उपवास कर पाओ,
तो तुम उपहास से बचना।
अगर दर्शन न हो संभव,
प्रदर्शन से ही तुम बचना।
कमी वंदन में रह जाये,
तो बंधन से ही बच जाना।
प्रवचन सुन न पाओ तो,
दुर्वचन से ही बच जाना।
केशलोचन न हो संभव,
क्लेश-लोचन ही कर लेना।
न भोजन छोड़ पाओ तो
भजन भी छोड़ मत देना।
न कर पाओ प्रतिक्रमण,
अतिक्रमण से बच जाना।
क्षमा गर माँग न पाओ
क्षमा करके ही तिर जाना।
न मीठे बोल कह पाओ तो
केवल मौन रह जाना।
कहे कोई अगर कड़वा,
उसे हँसके ही सह जाना।
निभा पाओ न रिश्तों को
तो उनको तोड़ मत देना।
किसी का हाथ तुम धरके,
राह में छोड़ मत देना।
(डॉ.पी.एन.जैन)
चिंता एक विषय पर अटक जाना,
चिंतन एक विषय से आगे बढ़ जाना ।
चिंता से बचने का चिंतन सही/आसान तरीका है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
It is not possible to know what you need to learn,
unless Guru guides you.
शनि से मन को, मनी से दिमाग को कैसे बचायें ?
काले (शनि का), पीले (सोना) कामों से बचें ।
डॉक्टर के पर्चे को ना समझें/समझ आयेगा भी नहीं, डॉक्टर को समझो/डॉक्टर पर विश्वास करो ।
गुरु/भगवान की बातें तो कम ही समझ पाओगे सो गुरु/भगवान को समझो/उन पर विश्वास करो/उनकी बातों पर विश्वास करो ।
किसी ने कहा – “बचपन में बुढ़िया मर गयी”,
यानि !
मरने से कुछ साल पहले उसने धर्म में प्रवेश किया था ।
सावधान !!
हमारे मरने के बाद हमारे लिये सब यह ना कहें,
इसलिये समय रहते धर्म शुरू कर दें ।
शून्य का कोण 360 ड़िग्री यानि पूर्ण/पूर्णता का प्रतीक ।
इसे हीन (Zero) दृष्टि से ना देखें ।
व्यवहार में भी यह शून्य जिस अंक के अंग लग जाता है, उसकी कीमत दहाई, सैकड़ादि में बढ़ा देता है ।
जिसने संसार को शून्य कर लिया, उसने पूर्णता/निर्वाण को प्राप्त कर लिया ।
ज्यादा Analysis करने से Paralysis हो जाती है ;
करना ही है तो अंतरंग विकारों का करें, बाह्य परिस्थितियों का नहीं ।
सिर्फ़ चाहने से पाया नहीं जाता,
पाने की चाह छोड़ने से पाया जाता है/उस राह पर चलने से पाया जाता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
A GOAL without a plan is just a WISH.
पुस्तक को आँखों के बहुत करीब रखने से पढ़ नहीं पाओगे तथा आँखों में भी दर्द होने लगेगा ।
सांसारिक संबंधों में भी उचित दूरी बनाये रखना दोनों के हित में होता है ।
(यह सावधानी गुरु तथा भगवान के साथ भी रखनी चाहिये)
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
जो संसार से विभक्त होकर,
भगवान/गुरु के चरणों में समर्पण कर दे ।
प्रसन्न रहना है तो हर काम उत्साह से करो ।
जो समाधि-मरण के प्रति भी उत्साह रखते हैं, वे ज़िंदगी भी उत्साह/प्रसन्नता पूर्वक जीते हैं ।
जैसे बकरी के वज़न को संतुलित किया जाता है…
खूब खिला कर शेर के पिंजरे के पास बांध कर,
वैसे ही सांसारिक कार्यों के साथ (परमार्थ में पूरी श्रद्धा रखते हुये) 6 आवश्यकों को करते रहने से, संतुलन बना रहता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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