जो संसार से विभक्त होकर,
भगवान/गुरु के चरणों में समर्पण कर दे ।
प्रसन्न रहना है तो हर काम उत्साह से करो ।
जो समाधि-मरण के प्रति भी उत्साह रखते हैं, वे ज़िंदगी भी उत्साह/प्रसन्नता पूर्वक जीते हैं ।
जैसे बकरी के वज़न को संतुलित किया जाता है…
खूब खिला कर शेर के पिंजरे के पास बांध कर,
वैसे ही सांसारिक कार्यों के साथ (परमार्थ में पूरी श्रद्धा रखते हुये) 6 आवश्यकों को करते रहने से, संतुलन बना रहता है ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
अभिमान – मैं औरों से बड़ा,
स्वाभिमान – मैं औरों से छोटा नहीं ।
ज़िंदगी समझ न आये, तो मेले में अकेला;
समझ आ जाये तो अकेले में मेला ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
परछाईं को अंधकार मत मानना,
यह तो प्रकाश का द्योतक है ।
वीतराग धर्म कहता है – चोर (द्वेषादि) को नहीं, चोर की माँ (राग) को पकड़ो ।
डॉ.वीरसागर जी जैन
देश के पतन का कारण …
स्वतंत्रता के पहले की कर्म-भूमि को हमने स्वतंत्रता के बाद भोग-भूमि में बदल दिया है ।
मुनि श्री प्रमाण सागर जी
गाड़ी पकड़ी जाने पर किसी बड़े आदमी का नाम लेने पर पुलिस छोड़ देती है, ऐसे ही भगवान का नाम लेने पर कर्म छोड़ देते हैं ।
ब्र. संजीव भैया
नौकरी के साथ धर्म का सामंजस कैसे बिठायें ?
नौकरी को धर्म रूपी शरीर का अंग समझ कर ।
मुनि श्री सुधासागर जी
पाप को भूमि से भारी इसलिये कहा है क्योंकि पत्थर तो समुद्र की तलहटी तक ही जाता है पर पाप तो नरक/जन्मजन्मांतरों तक जाता है ।
सफलता वह…
जिसमें असफल होने पर भी सफलता जैसा समता का भाव/संतुष्टि रहे ।
Smooth seas do not make skillful sailors.
पशु बोल नहीं सकते इसलिये दुःख सहते हैं ।
इंसान के बोलने पर संयम नहीं है, इसीलिये दुःख को निमंत्रण देते हैं !
🙏🏻🙏🏻🙏🏻 जय जिनेन्द्र 🙏🏻🙏🏻🙏🏻
(शोभा जैन)
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