If few can do it then you can do it,
If no one can do it then you must do it.

पुरुषार्थ कितना और कब तक ?

सब फाइलें आप ही Dispose करते हो ?
या सब फाइलें ऊपर वालों को ही Divert कर देते हो ?

जब बस की ना रह जाये तब गुरु/भाग्य/भगवान को Divert करें ।

चिंतन

फाँसी के सज़ायाफ्ता को कोबरा से कटवाकर मरवाने का प्रयोग किया ।
कोबरा छुलाकर कटवाने की जगह 2 पिन चुभा दिये गये ।
थोड़ी देर में व्यक्ति मर गया ।
हद तो तब हुई जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी ज़हर से मृत्यु घोषित हुई ।
सोच का इतना प्रभाव !!

सच्चे भक्त को गुरु/भगवान से कुछ नहीं चाहिये, उसे तो गुरु/भगवान चाहिये ।
सच्चे इंसान/मित्र की भी अपने प्रियजनों के प्रति ऐसी ही भावना होती है ।

मुनि श्री सुधासागर जी

जब सब अपनी अपनी ही मानते और करते रहते हैं फिर भी खुश क्यों नहीं रहते ?
इसीलिये क्योंकि वे अपने मन की ही करना चाहते हैं दूसरों की सुनते ही नहीं, इससे दूसरे दु:खी रहते हैं, फिर हम खुश कैसे रह पायेंगे !

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

कर्म-सिद्धांत के दो महत्वपूर्ण/उपयोगी पहलू –
1. मेरे वर्तमान की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है ।
2. अपने भविष्य को बनाना/बिगाड़ना मेरे हाथ में है ।

गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

यदि आपके पास 86400 रु. हों और उनमें से 10 रुपये खो जायें तो क्या आप बाकी रुपयों को फेंक दोगे ?
फिर 10 सैकिंड गुस्सा आने पर या किसी बात का बुरा लगने पर पूरा दिन (86400 सैकिंड) बर्बाद क्यों कर देते हो !

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