एक सेवक ना आये, डाँटो;
दूसरा ना आये, प्यार से कारण पूछो;
तीसरा ना आये, तो पहले से क्षमा माँगो (पापोदय मेरा था, डाँट तुझे पड़ गयी )
चिंतन
भाव प्रधानता का मतलब यह नहीं कि भावों से कार्य की पूर्णता कर लें, क्रिया की जरूरत ही नहीं,
बल्कि यह कि…
हर क्रिया भावपूर्ण होनी चाहिये ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
How can you see the FUTURE,
if you live in PAST.
(क्योंकि उपयोग तो एक जगह ही लगेगा)
🌺🌼🌿कुछ तो चाहत होगी, इन बूँदों की भी;
वरना…
कौन छूता है ज़मीं को, आसमाँ पर पहुँच कर !🌸🌻🍃
🌹🌹 (मंजू) 🌹🌹
It is not only fine feathers that make fine birds.
(पंखों में शक्ति/ अभ्यास/ ऊँचाई तथा दूर तक उड़ने की निडरता महत्वपूर्ण होती है)
दुर्जनों के साथ मैत्री या बैर कुछ भी नहीं करना चाहिए ,
कोयला जलता हुआ है तो स्पर्श करने पर जला देता है
और
ठंडा है तो हाथ काले कर देता है ।
( सुरेश )
चौराहे पर खड़ी ज़िंदगी,
नज़रें दौड़ाती है… 👀
काश कोई बोर्ड दिख जाए,
जिस पर लिखा हो… ✍🏻⏬
“सुकून”..
“0” कि.मी.
(धर्मेन्द्र)
In a company/home the supervisor/mother is the person the employee/child sees as the… “Company”
स्वाभिमान से विनम्रता बढ़ती है, अभिमान में घटती है ।
स्वाभिमान में दोनों हाथ पीछे से आगे लाना है (पीछे वालों को साथ लेकर चलना), अभिमान में आगे से पीछे (सबको पीछे करके आगे बढ़ना) ।
मुनि श्री सुधासागर जी
कहते हैं – उतने पैर पसारिये, जितनी चादर होय, वरना मच्छर काटेंगे ।
तो क्या भाग्य के भरोसे पैर सिकोड़कर ही पड़े रहें ?
नहीं, चादर को लंबा करने का पुरुषार्थ करने से किसने मना किया !
Nature/luck provides the wind,
but man must raise the sails.
Be like a camel,
always competing for scarce* resources in a harsh climate.
* Barely / दुर्लभ / अपर्याप्त
(आज के कठिन समय में, हमारे लिए दुर्लभ है “धर्म”)
2 प्रकार की –
अधिकृत – गुरु, माता/पिता द्वारा – वांछ्नीय
अनाधिकृत – जिन पर अधिकार नहीं है, उनकी जैसे पड़ौसी की – अवांछनीय
मुनि श्री सुधासागर जी
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