दूसरों में झाँकना छोड़ो, अपने को आंकना शुरू करो ।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
Some people will pretend to care,
so they can get a better seat to watch you struggle.
Every helping hand, is NOT always there to help.
(Mr. Arvind Barjatya)
- कल पर्युषण पर्व चला गया ।
पर क्या सचमुच पर्व चला गया ?
जाता वही है जो पहले कभी आया हो ।
पर क्या पर्युषण पहले हमारे अंदर कभी आया था !
पहचान ?
यदि हमारे जीवन में बुराईयाँ कम हुई हों, गुण बढ़े हों, तो हमारे जीवन में वह पर्व आया था ।
- पर्युषण से पहले और बाद में क्षमा दिवस मनाते हैं ।
पूर्व की क्षमा इसलिये ताकि हमारे जीवन में नरमी/आद्रता आये ,धर्म का अंकुर पनप सके ,
बाद की क्षमा इसलिये ताकि धर्म हमारे जीवन में टिक सके, आद्रता बनी रह सके ।
- क्या हमारे जीवन में क्षमा आयी है ?
- पहचान ?
यदि हमारे दुश्मन कम हुये हैं और मित्र बढ़े हैं तो क्षमा हमारे जीवन में आयी है ।
हम सब संसार के सब जीवों से क्षमा भाव रखें और वे सब जीव हमें क्षमा करें ।
- संसार से विश्राम की दशा का नाम ही ब्रम्हचर्य है ।
- स्त्री के पीछे भागना और स्त्री से दूर भागना, बात एक ही है ।
जब तक ये यात्रा जारी है, समझो कि ब्रम्हचर्य की यात्रा अभी शुरू नहीं हुई है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
- दुनियाँ के सारे संबंधों के बीच, मैं अकेला हूँ यही भाव रखना आकिंचन धर्म का सूचक है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
- कुछ मिलने की भावना से किसी से मिलोगे तो कुछ ना मिलेगा, छोड़ने की भावना से छोड़ोगे तो कुछ ना छोड़ पाओगे ।
- हमारा है क्या जो हम छोड़ने का अभिमान रख रहे हैं, हमारा तो शरीर भी अपना नहीं वो भी शमसान का है ।
- हमारी तो चेतना है, ज्ञान है उसे हम छोड़ नहीं सकते, यही आकिंचन धर्म हैं ।
- भोग विलास की चीजों और क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग सबसे बड़ा माना गया है और महत्वपूर्ण भी ।
- त्याग करने से लोभ और मोह कम होता है ।
- दान और त्याग में फर्क यह है की दान अपने लिये थोड़ा रख कर, थोड़ा दिया जाता है, जबकि त्याग में पूरा का पूरा छोड़ा जाता है ।
दान दूसरे की अपेक्षा से दिया जाता है, त्याग किसी की अपेक्षा से नहीं सिर्फ वस्तु को छोड़ा जाता है ।
दान प्रिय चीजों का होता है, जैसे – जीवन दान, ज्ञान दान, कन्या दान आदि ।
त्याग अप्रिय चीजों का जैसे – कमजोरियाँ, बुराईयाँ । - त्याग और दान, अहंकार और बदले की भावना से नहीं करना चाहिये ।
- तप यानि इच्छाओं का निरोध
जैसे चाय छोड़ना आसान है चाय की चाह छोड़ना मुश्किल, पहले चाह छोड़नी है तब चाय छोड़ें । - आचार्य श्री ने कहा – अपेक्षा निरोध: तप:
यानि लोगों से अपेक्षा नहीं रखें, वो तप हो गया । - तप तो संसार में भी करना पड़ता है, माँ को नौ माह गर्भ में, छात्र को, रोटी को, तो फिर सर्वोत्कृष्ट आत्मा को बिना तप के परमात्मा बनाना संभव है क्या ?
- बुराईओं से दूर रहते हैं
- पुण्यबंध होता है
- कर्म कटते हैं
- समाज में प्रतिष्ठा होती है
- और हमारी सामर्थ्य बढ़ती है
तप के बहुत फायदे हैं –
- संयम का मतलब होता है – आलंबन, बंधन ।
जैसे लता ,पेड़ के सहारे ,थोड़ा सा बंधन पाकर ,उन्नति को प्राप्त करती है, फलती फूलती है । - शर्त ये है कि उस लता में शुद्ध खाद और पानी ड़ाला जाये ,जो हमारी भावनाओं का हो ।
- ये बंधन निर्बंध करने में सहायक होता है ,
- आगे जब वो शक्ति पा लेती है तब उसे बंधनों की जरूरत नहीं रहती ।
- गगरी के गले में रस्सी बांधी जाती है तो वो उत्थान को प्राप्त होती है, पतन भी हो जाये उसका तो भी वो कीचड़ में से बाहर निकल आती है ।
- संकल्प से ही अच्छे संस्कार बनते हैं, टूटने के लिये तो किसी संकल्प की जरूरत नहीं होती ।
- सत्य परेशान होता है पर अंत में जीत सत्य की ही होती है ।
जैसे फिल्म में हीरो ढ़ाई घंटे पिटता है और आखिर के आधे घंटे विलेन मार खाता है/मर जाता है । - सत्य साधनों से मरता है, साधना से पनपता है ।
- सत्य कड़वा नहीं होता पर जब कषाय के लिफ़ाफ़े में रखकर इसे दिया जाता है तो कड़वा लगता है ।
शौच यानि पवित्रता ।
पवित्रता कैसे आती है ?
जब हमारे मन से लोभ कम होता है, असंतुष्टि, आकांक्षायें, अतृप्ति कम होती हैं ।
पवित्रता किसकी ?
मन की, आत्मा की, शरीर की नहीं, शरीर तो अपवित्र रहे फिर भी मन अच्छा हो सकता है ।
एक बार गुरु नानक जी किसी के यहाँ खाने पर गये, जब उन्होंने रोटी तोड़ी तो उसमें से खून निकला, पता लगा वो जीव हिंसा का काम करता था, जानवरों को मारता था ।
उन्होंने संदेश दिया की कमाई करने में बुराई नहीं है, पर पसीने की खाओ ,खून की नहीं ।
कहते हैं कि – दिल बड़ा तो भाग्य बड़ा !!
सही है ,बड़े तालाब में गंदगी कम होगी, छोटे दिल में अटैक होने की संभावना अधिक ।
यानि मायाचारी का उल्टा, सरलता का धर्म ।
हम ये सोचते हैं की मायाचारी करके हम फायदे में हो जायेगें, कुछ समय तक तो अपने को फायदा लगता है, जैसे रावण ने सीता को हरा तो बहुत खुश हुआ ,पर उसका अंत कैसा हुआ ! शकुनी/दुर्योधन को देखो सबका अंत कैसा हुआ ?
मान करने से नीच गोत्र का बंध होता है, अपनी प्रशंसा, दूसरों की निंदा करना भी मान का ही रूप है।
मान को अपने जीवन से हटाने के लिये दूसरों के गुणों की प्रशंसा करें।
Meditation Purifies Mind,
Prayer Purifies soul,
Charity Purifies Wealth,
Fast Purifies Health,
And Forgiveness purifies Relations…
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