परिवार कमियों के साथ स्वीकारा जाता है।
धर्म में कमियों को सुधारा जाता है।
चिंतन
अशुभ निमित्तों से भावनाओं को खराब होने मत दो।
ऐसे Object को देखते ही सुधार प्रक्रिया शुरु कर दो। जैसे युवा वेश्या का शव दिख जाए तो विचारें – काश ! ये अपने स्वस्थ शरीर को तप/ संयम में लगाती!
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
लोभ को पाप का बाप क्यों कहा ?
क्योंकि लोभ के लिये अपमान को पी जाते हैं,
लोभ से ही मायाचारी आती है,
लोभ असफल होने पर क्रोध आता है ।
आर्यिका श्री स्वस्तिभूषणमति माताजी
मौन में बात बंद करना नहीं होता है, बस दूसरों की जगह अपने आप से बात करनी होती है।
चिंतन
मन कोमल होता है सो आकार ले लेता गर्म लोहे जैसा, झुक जाता है तूफानों में, घुल जाता अपनों में/ अपने में।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
(J.P.Sharma)
कुसंगति के प्रभाव से बचे रहने के लिये बहुत पुरुषार्थ करना होता है।
लेकिन सुसंगति के बावजूद व्यक्ति बिगड़ जाए तो पुरुषार्थहीन ही कहलायेगा।
ऐसे वातावरण में यदि प्रगति नहीं की तो पुरुषार्थ की भारी कमी।
चिंतन
भिखारी वह जो इच्छा रखता हो/ जिसकी इच्छा पूरी न हुई हो।
आदर्श भिखारी…. शांति की इच्छा रखने वाला, शांति मिल जाने पर इस इच्छा को भी छोड़ने को तैयार।
क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
मजबूरी में Accept भी करना होता है।
Adjust करने के लिए पुरुषार्थ ही।
निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
Make a mind which never minds.
Make a heart which never hurts.
Make a touch which never pains.
Make a relation which never ends.
(J.L.Jain)
पानी अग्नि के सम्पर्क से गर्म तो हो जाता है, पर स्वाद आदि गुण नहीं बदलते हैं।
जुआरी की संगति से युधिष्ठर जुए में सब कुछ हारे पर अन्य गुण प्रभावित नहीं हुए।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
शांति का हमको अनुभव नहीं/ जानते नहीं, इसीलिये कम अशांति को हम शांति और ज्यादा अशांति को अशांति मानते/ जानते हैं।
शांतिपथ प्रदर्शक
डॉ. (ब्र.) नीलेश भैया
धर्म को कैसे पहचानें/ जानें ?
जैसे आत्मा को पहचानते/ जानते हैं – शरीर के माध्यम से।
ऐसे ही धर्म को धार्मिक क्रियाओं के माध्यम से जानें/ पहचानें।
चिंतन
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