वाद (बहस) से ही विवाद होता है ।

पर,

बोली यदि खत्म कर दी, तो गोली का काम करेगी ।

मुनि श्री मुनिसागर जी

झींगुर उल्टा पड़ा हो तो बहुत पुरूषार्थ करने पर भी सीधा नहीं हो पाता ।
जरा सा निमित्त मिल जाये, ज़रा से सहारे से सीधा होकर भाग जाता है, अपने बिल में घुस जाता है ।

चिंतन

पूज्यों/बड़ों/गुणवानों के चरणों में सिर झुकाने की परम्परा इसलिये है क्योंकि अपने यहाँ चारित्र की प्रमुखता है ।
चरण आचरण के प्रतीक होते हैं, सिर ज्ञान का प्रतीक है ।
ज्ञान को चारित्र के आगे झुकाने की परम्परा  है ।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

शरीर मिट्टी का ही तो बना है ।
यह मिट्टी जमाने की हवा लगकर सूख जाती है ।
तब सत्संग के छीटें मार लें, वरना यह पात्र बनने के लायक नहीं रहेगी और हम किसी की तथा अपनी प्यास भी नहीं बुझा पायेंगे ।

चिंतन

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