भविष्य को जानने की इच्छा नहीं, बल्कि अपने दोषों को जानने की लालसा रखो ।
दोष दूर होंगे तो भविष्य अपने आप सुधर जायेगा ।

(श्री संजय)

एक व्यक्ति को दोष देखने की आदत थी। गुरू ने कहा जब किसी के दोष दिखें या बोलो तब अपने घर के सामने एक पत्थर रख लो।
थोड़े दिन में इतने पत्थर जमा हो गये कि घर में घुसना मुश्किल हो गया।

दोष-दर्शन वाले के अंत में इतने पत्थर जमा हो जाते हैं कि वह अपनी आत्मा में प्रवेश कर नहीं सकता।

दोष-दर्शन की वृत्ति रहेगी तो देवदर्शन / निज आत्मा के दर्शन नहीं होंगे।

रेशम का कीड़ा जब तक खुद अपने ऊपर रेशम के धागे को पूरी तरह से लपेट नहीं लेता,
कोई दूसरा उसे ज़िंदा उबलते हुये पानी में नहीं ड़ालता ।

चिंतन

(दूसरे लोग हमें दु:ख तभी दे पाते हैं जब हम खुद अपने आप को मोह के बंधन में बांध लेते हैं )

भूमिका यानि भूमि तैयार करना।
ध्यान रहे, हमारा जीवन भूमि तैयार करने में ही न निकल जाये।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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