क्या आप सुबह सुबह दुसरे का घर साफ करने जाते हो ?

यदि नहीं तो दुसरे के सुधारने में क्यों लगे रहते हो ।

श्री लालमणी भाई

पैरों में कांटे गढ़े, आंखो में फ़ूल, आंखे चली क्यों ?
( पैर में कांटे तभी लगते हैं जब आंखे बाहर की सुंदरता से आकर्षित हो असावधान हो जातीं हैं। )

असावधानी से अच्छे  काम का Result भी अच्छा नहीं होता है ।

अंधे को खीर खाने दी ।
अंधे ने पूछा – खीर कैसी होती है ?
सफ़ेद ।
सफ़ेद कैसा होता है ?
बगुले जैसा ।
बगुले की गर्दन तो टेड़ी होती है, गले में फ़ंस जायेगी, मैं खीर नहीं खाऊंगा!

कुछ लोग, धर्म के क्षेत्र में इसीलिये नहीं आते क्योंकि शायद वे अंधे हैं, कहीं धर्म उनके गले में अटक ना जाये ।

श्री लालमणी भाई

S. L. भाई  ने आचार्य श्री से पूछा कि अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा इतनी छोटी परिस्थितियों से उठ कर इतनी बड़ी जगह कैसे पहुंच गये ?
आचार्य श्री – सुना है वो गले में किसी हिन्दु भगवान की फ़ोटो लटकाते हैं, इसका मतलब अहिंसा में विश्वास रखते हैं, यह भी अपने आप में एक बड़ा कारण हो सकता है।
वैसे कर्म प्रक्रिया बड़ी जटिल है इसे समझना कठिन है।

एक बेटी ने कहा- आज भगवान ने मेरी इच्छा पूरी कर दी।
उसके छोटे से भाई(रेयन) ने कहा – ये सही नहीं है, आज परीक्षा में मुझे Twinkle कि Spelling नहीं आ रही थी, सो मैंने Teacher से पूछी।
उन्होंने कहा – Question Paper  में ही ढूंढो।
मैंने ढूंढ़ी तो Spelling, Question Paper में मुझे मिल गयी ।

भगवान खुद किसी की इच्छा पूरी नहीं करते, उसे पूरा करने का उपाय बताते हैं।

श्रीमति रिंकी

पुरूषार्थ तो खुद ही करना पड़ेगा।

एक व्यक्ति ने कहा – चाय छोड़नी है।
आचार्य श्री – चाय छोड़ने से पहले चाय की चाह छोड़नी चाहिये।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

Q.  आत्मा दिखती नहीं है, कैसे विश्वास करें ?
A. दूध में मक्खन दिखता है?
पहले दूध को तपाओ (तप),                                                                                                                     ठंडा करो (कषायें शांत),                                                                                                                             जमाओ (स्थिरता),                                                                                                                                     मथो (मनन),                                                                                                                                           फिर मक्खन (आत्मा) साफ़ दिखने लगेगा।

आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी

पंचम काल में असहनीय दुखः होते ही नहीं हैं,
असहनीय दु:ख तो नरक में ही होते हैं।

(श्री कल्पेश भाई)

(हम तो दु:खों को सह पा रहे है ना !
तो हमारे दु:ख असहनीय कैसे हुये ?)

ज्ञान के इतनी गहराई में जाने की क्या ज़रूरत है ?

स्व. श्री राजेन्द्र भाई

यदि गाड़ी के बारे में गहरा ज्ञान हो तो, जब गाड़ी अटक जायेगी तो आप उसको संवार सकते हो।

चिंतन

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April 8, 2022

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