धनतेरस को जैन आगम में धन्य तेरस या ध्यान तेरस भी कहते हैं ।  
भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुये दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये ।
तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मुनि श्री क्षमासागर जी/पं. रतनलाल बैनाडा जी

धर्म की पहचान, अधर्म पहचानने से होगी ।
अधर्म कम करते जाओ, जीवन में धर्म आता जायेगा ।

अधर्म किसके लिये ?
शरीर के लिये ! जो यहीं ढ़ेर हो जायेगा, उसके लिये ढ़ेर लगाकर छोड़ कर चले जाना चाहते हो !

आचार्य श्री विद्यासागर जी

जो लोग ज्ञान को दूसरे के हाथ के चम्मच से लेते रहते हैं ।
अंत में उनके हाथ सिर्फ़ चम्मच ही रह जाता है ।

(श्री धर्मेंद्र)

( भावार्थ :- दूसरे के हाथ से चम्मच से लेते रहने का मतलब है – खुद ज्ञानार्जन करने का पुरूषार्थ नहीं करते, ज्ञान का मनन, चिंतन नहीं करते तथा चरित्र में उस ज्ञान को नहीं उतारते हैं, ऐसा ज्ञान अंत में उपयोगी नहीं रहता है । )

तिथियां तो 15 या कम होतीं हैं, पर उन तिथियों में किसी अतिथी के आने या जाने से वे पूज्य हो जातीं हैं ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

गड़बड़ लोगों को Sand paper समझो,                                                                                           आप Smooth हो जाओगे,                                                                                                            Sand Paper अपना वज़ूद खो देगा।

आयुष जैन (गुना ) 12 साल के बच्चे ने  आचार्य श्री के श्री मुख से सुना कि एक शराबी हर समय शराब पीता था, उसे कहा गया कि कमरे के एक कोने से दूसरे कोने में जाओ तब शराब ना पीने का नियम ले लो । उसने नियम ले लिया, कमरे में एक कोने से दूसरे कोने में जाते समय छत गिर गई और वो मर गया, लेकिन मृत्यु के बाद देव बना, क्योंकि वह त्यागी मरा था ।

आयुष को भी Thalassemia बीमारी हो गयी | जब हालत बहुत बिगड़ने लगी और उसे इन्दौर Ambulance से ले जाने लगे, रास्ते में उसे घबराहट हुई उसके पिता ने कुछ खाने और दवा लेने का आग्रह किया तब आयुष ने कहा कि मैं तो नियम लेके चला हूँ कि जब तक इन्दौर नहीं पहुंच जाऊंगा, तब तक मेरा अन्न, जल और दवा का त्याग है।
आज आयुष अपना नियम द्रढ़ता से निभाते हुये प्राण त्याग कर, देवलोक को सिधार गये हैं ।                                                                                                                                                                    

मनीषा बुआ

 

छोटे-छोटे नियमों को द्रढ़ता से पालने वाले देवगति ही पाते हैं ।

शुभ सरस्वती है तथा लाभ लक्ष्मी है ।
पर हम सब लाभ ही लाभ के पीछे लगे रहते हैं ।
शुभ बढ़ा लो ( अपने पुरूषार्थ को धर्म में लगाकर ) और लाभ कम कर लो ( दान से ) तो जीवन में शुभ के साथ लाभ भी ज्यादा हो जायेगा ।
जैसे पंगत में मना करने पर और-और मिलता है ।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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