मुसलमान समुदाय के अबुल कासिम गिलानी और सरमद, औरंगजेब बादशाह के समय फ़कीर हुये, जिन्होंने दिगम्बरत्व को अपनाया ।
बादशाह के पूछ्ने पर कि आप नग्न क्यों रहते हैं ?
उन्होंने ज़बाब दिया कि लिबास वो पहनते हैं जिनमें ऐब होते हैं,
और जिसने तुझे ये बादशाहत दी है उसी ने हमें ये लिबास दिया है, हम उसके दिये हुये लिबास को कैसे छोड़ दें ?
मुनि श्री क्षमासागर जी
कलकत्ता की तरफ विहार करते समय एक पुलिस एस. पी. साथ में चल रहे थे ।
उन्होंने गुरू श्री से पूछा – नग्नता से क्या संदेश मिलता है ?
गुरू श्री – कम से कम में काम चलायें, जो बचे वो दूसरों के काम आए, यह नग्नता का अर्थ-शास्त्र है ।
प्रश्न : – मारीच आदिनाथ भगवान से नाराज़ था तो उनके समवसरण में क्यों जाता था ?
उत्तर :- यह देखने जाता था कि समवसरण में क्या-क्या है, ताकि जब मैं अपना समवसरण बनाऊंगा तो इससे भी अच्छा बना सकूं । इनके उपदेश में क्या-क्या कमियां हैं, जिनको बाहर जाकर मैं Highlight कर सकूं ।
पं. रतनलाल बैनाडा जी
क्या हम अपने गुरूओं के पास इस मन: स्थिति से तो नहीं जाते हैं !
धर्म तो Homeopathic दवा है।
जो आपकी बीमारियों ( कमज़ोरियों) को पहले दिखाती ( उभारता ) है, फिर ठीक करती है ।
चिंतन
पुरूष ( आत्मा ) के द्वारा किया गया कार्य, जिसका अर्थ व्यर्थ ना हो ।
श्री लालमणी भाई
मैं पहले Railway में Deputy था,
फिर गुरू का Deputy बना,
अब अपना Deputy बनने की प्रक्रिया में हूँ,
और Final Goal अपना ही Chief बनने का है।
चिंतन
गन्ने के ऊपर और नीचे का भाग चूसने योग्य नहीं होता है ( बचपन और बुढ़ापा ), पर यदि उसे खेत ( धर्म ) में रौंप दें तो गन्ने की फसल ( जीवन में मिठास ) उपज आती है ।
रामलीला में हनुमान का Role करने वाला बीमार हो गया।
Director जल्दी जल्दी में एक हलवाई को Dialogue रटाकर 200 रू. में मना लाया ।
रावण के भयानक रूप को देखकर, हनुमान रूपी हलवाई ड़र कर भाग खड़ा हुआ ।
Director के पूछ्ने पर वह बोला कि – Acting करने को तो मैं तैयार था, पर उस रावण को सामने देख सब Dialogue भूल गया ।
ज्ञान यदि आचरण के साथ पक्का नहीं किया तो, मृत्यु को सामने खड़ा देख सारा ज्ञान भूल जाओगे ।
खुरई में गुरू श्री से किसी ने पूछा कि क्या कुर्सी पर बैठकर जाप दे सकते हैं ?
गुरू श्री – यदि पालती लगाने में विकलता होती है, तो जाप ना देने से अच्छा है कि कुर्सी पर बैठकर जाप करें ।
श्री विमल चौधरी
देव, गुरू, शास्त्र का आश्रय लेने से भावों में निर्मलता आती है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
Every quarrel starts with nothing and ends in a struggle for supremacy.
क्योंकि अपनी बात सबको अच्छी लगती है और आत्मा अपनी है,
इसलिये आत्मतत्व की बात भी सबको अच्छी लगती है ।
पर विषय-भोगों और विकारों के चक्कर में हम उसे झुठलाते रहते हैं ।
महापुरूष सामने वाले को भी महानता से स्वीकार करते हैं ।
हिन्दुओं के कुछ प्रसिद्ध साधु तैलंग स्वामी, शुकदेव, दत्तात्रेय, वामदेव, हारीतक, संवरतक, आरूणी, श्वेतकेतु आदि जिन्होंने दिगम्बरत्व को अपनाया ।
पं. रतनलाल बैनाडा जी
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