संस्कार तो ‘Groove’ जैसे होते हैं, उसी में से प्रवाह होता रहता है।
यदि इससे आत्मा पतित/ दुखी हो रही हो तो उसके Side में दूसरा (सही दिशा वाला) ‘Groove’ बना लें, धारा सही दिशा में प्रवाह करने लगेगी।

(श्रीमति अनिता जैन- शिवपुरी )

ऊँचाई पाने के लिये गहराई में जाना जरूरी है,
तो गहराई कैसे पायें ?
बीज अपने आपको मिटा कर ही गहराई (जड़) तथा ऊँचाई प्राप्त करता है।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

आज Car की कीमत बहुत है, कल को गैराज की कीमत कार से ज्यादा हो जायेगी।
पर इन दोनों से ज्यादा कीमती है थी/ है और रहेगी →
1. ‘C’ – change what you can.
2. ‘A’ – Accept which you can’t change.
3. ‘R’ – Remove yourself if you can’t accept.
और यदि अपने को Remove भी नहीं कर सकते तो इतने ऊपर उठ जाओ कि वह समस्या छोटी दिखने लगे, जैसे हवाई जहाज में बैठ कर बड़ा पहाड़।

(डॉ. सुधीर गर्ग)

व्रती अपने व्रतों का रक्षण व पालन वैसे ही करते हैं जैसे माता-पिता अपने बच्चों का पालन (आगे बढ़ाने) तथा रक्षण (सही भोजन,पढ़ाई आदि)।
बच्चे रक्षण तो पसंद करते हैं पर पालन नहीं। व्रती भी प्राय: पालन में उत्साह कम रखते हैं।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

अशुभ निमित्तों से भावनाओं को खराब होने मत दो।
ऐसे Object को देखते ही सुधार प्रक्रिया शुरु कर दो। जैसे युवा वेश्या का शव दिख जाए तो विचारें – काश ! ये अपने स्वस्थ शरीर को तप/ संयम में लगाती!

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

लोभ को पाप का बाप क्यों कहा ?
क्योंकि लोभ के लिये अपमान को पी जाते हैं,
लोभ से ही मायाचारी आती है,
लोभ असफल होने पर क्रोध आता है ।

आर्यिका श्री स्वस्तिभूषणमति माताजी

कुसंगति के प्रभाव से बचे रहने के लिये बहुत पुरुषार्थ करना होता है।
लेकिन सुसंगति के बावजूद व्यक्ति बिगड़ जाए तो पुरुषार्थहीन ही कहलायेगा।
ऐसे वातावरण में यदि प्रगति नहीं की तो पुरुषार्थ की भारी कमी।

चिंतन

भिखारी वह जो इच्छा रखता हो/ जिसकी इच्छा पूरी न हुई हो।
आदर्श भिखारी…. शांति की इच्छा रखने वाला, शांति मिल जाने पर इस इच्छा को भी छोड़ने को तैयार।

क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी

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