Make a mind which never minds.
Make a heart which never hurts.
Make a touch which never pains.
Make a relation which never ends.

(J.L.Jain)

पानी अग्नि के सम्पर्क से गर्म तो हो जाता है, पर स्वाद आदि गुण नहीं बदलते हैं।
जुआरी की संगति से युधिष्ठर जुए में सब कुछ हारे पर अन्य गुण प्रभावित नहीं हुए।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

अवतारवाद → ऊपर से नीचे तथा नीचे से ऊपर।
उत्तीर्णवाद → नीचे से ऊपर ही (मनुष्य से भगवान, बनने की प्रक्रिया जैसा जैन-दर्शन में)

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

मंदिरों में सोना चांदी के उपकरण Avoid करना चाहिये। इनसे चोरी की संभावना से ज्यादा महत्वपूर्ण है,  भगवान की मूर्ति की अविनय।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

भूलकर भी देव, शास्त्र, गुरु के प्रति अविनय शब्द न निकल जाऐं।

क्षु. श्री जिनेंद्र वर्णी जी 

(बिना मन से बोलने पर भी गलत वचन बोलने का दोष तो लगेगा ही जैसे बिना Intention के गाली के प्रयोग को समाज में भर्त्सना – चिंतन)

देखने में आता है कि पैसे वालों का ही सम्मान होता है,
क्या उससे गरीबों का अपमान नहीं होता ?
सम्मान पैसे वालों का नहीं उनके पूर्व के पुण्यों का होता है जिसके कारण उन्हें पैसा मिला/ पैसे के त्याग का होता है।
गरीबों का अपमान उनके पूर्व के पापों से होता है, जिसके कारण वे गरीब बने।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

(लेकिन हम गरीबों के अपमान में निमित्त न बनें तथा उनके छोटे से दान की बड़ी सराहना करें)

भूत में जीओगे तो अटक जाओगे।
भविष्य में भटक जाओगे।
वर्तमान में नित नया वर्तमान आयेगा।
बोर नहीं होगे, नित नया उत्साह आयेगा।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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