ज़िंदगी Musical Chair का खेल ही है – एक-एक करके कुर्सियाँ ख़त्म होती जाती हैं, एक-एक करके व्यक्तियों का खेल समाप्त होता जाता है।
अंत में हमारा भी संगीत/ खेल समाप्त हो जायेगा, कुर्सी छीन ली जायेगी।

चिंतन

लेकिन जो खेल जीत जाता है, उसकी कुर्सी नहीं खिसकती (उसे मोक्ष की स्थायी कुर्सी मिल जाती है)……………..निधि – मुम्बई

बड़ी Post के Interview में Comfort Zone से बाहर निकलने का कारण बताने पर Selection हुआ तथा Appreciate किया गया।

अंजू-कोटा

(हम सब तो Comfort Zone में ही रहना चाहते हैं/Comfort Zone कम होने पर दु:खी हो जाते हैं !)

सुनारों की दुकानों पर झाडू उल्टी लगती है (बाहर से अंदर की ओर)।
फिर कचड़े को भरकर घर ले जाते हैं।
बहुत लम्बी विधि जैसे धोना, तेजाब डालना, आदि से उस कचड़े में से चांदी-सोने का चूरा निकालते हैं।

मंकू-ग्वालियर

मोह तथा चुम्बक अपने क्षेत्र में हर किसी को आकर्षित कर लेते हैं,
आत्मा भी शरीर के साथ मोहवश ही रहती है।
पर वैराग्य के क्षेत्र में मोह असफल हो जाता है।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

चलो अपन जहाँ को बांट लेते हैं…
अकाश तुम रख लो, जमीं हम रख लेते हैं,
सूरज तुम रख लो, रोशनी हम रख लेते हैं।
चलो एक काम करते हैं…
सब कुछ तुम रख लो, तुम्हें हम रख लेते हैं।

(सलिल)

छोटी सोच शंका को जन्म देती है, बड़ी सोच समाधान को।
सुनना (गुरु की सीख/ कटु सीख) सीख लिया तो सहना सीख जाओगे और सहना सीख लिया तो रहना।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

साइकिल रेस में Cow Trap लगा दिया। ज्यादातर लोग पट्टियों पर से सावधानी पूर्वक धीरे-धीरे पार करके आगे बढ़े।
एक सवार Diagonally तेजी से Cross करके रेस जीत गया।

(कुरुप जी)

“संसार” में – छोटे “स” से बड़ा “सा” बन जाता है यानि संसार बढ़ता ही जाता है।
संयम यानि सं+यम – “स” से संयम/ सावधानी, वो भी “यम” यानि जीवन पर्यंत की। इससे संसार घटता ही जाता है।

चिंतन

अगर कोई मक्खी सब्जी तौलते समय तराजू पर बैठ जाए तो उसकी कीमत दस पैसे,
लेकिन वही मक्खी अगर सोना तौलती तराजू पर बैठ जाए तो उसकी कीमत दस हजार रुपये होगी।

हम कहाँ बैठते हैं ?
किसके साथ बैठते हैं ?
उसके मूल्य (भौतिक/ सांसारिक/ आध्यात्मिक) से हमारे मूल्य निर्धारण में भी फ़र्क पड़ता है।

(सुरेश)

भारत को विकासशील तथा पश्चात देशों को विकासवान कहा जाता है।
इसमें बुरा क्या ?
हमारा तो इतिहास कहता है कि हम हजारों वर्ष पहले भी विकासशील थे !

आचार्य श्री विद्यासागर जी

वाचना का अर्थ है प्रदान करना/ शिष्यों को पढ़ाना।
Self Study नहीं, इससे ही एकांत-मत पनप रहे हैं।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

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