घर से पर-घर जाने के लिए अच्छे कपड़े पहनते हैं। गाँव से पर-गाँव जाने के लिए तैयारी और ज्यादा, धन आदि रखना होता है। देश से विदेश जाने के लिए उनकी करेंसी (राइट हैंड ड्राइविंग) आदि।
लोक से परलोक जाने के लिए क्या तैयारी कर रहे हैं ?
वहाँ तो धन दौलत, कीर्ति भी साथ नहीं जाती, घर वालों को साथ चलने को बोलोगे तो वे नाराज़ हो जायेंगे/ दुश्मन बन जायेंगे। साथ में कुछ जाएगा तो वह होगा अपना कर्म। वे कर्म शुभ हैं या अशुभ यह चॉइस हमारे हाथ में है।शुभ/ अशुभ का निर्णय होगा कि आपने इंद्रियों तथा मन का सदुपयोग किया है या दुरुपयोग !


प्रवचन आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (26 जनवरी)

आलोचना की आदत पड़ जाती है (प्राय: पीठ पीछे),
निंदा → सामने वाले को नीचा दिखाने को (प्राय: व्यक्ति के सामने),
समालोचना → सामने वाले को सुधारने, उसकी अच्छाइयां तथा कमजोरियां बताना (प्राय: व्यक्ति के सामने)।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

आचार्य श्री अमृतचंद स्वामी ने कहा है → भेद-विज्ञान मोक्ष/ कल्याण का कारण है और इसका अभाव संसार/ अकल्याण का कारण है।
एक महिला ने सुंदर से लोटे से सहेली के हाथ धुलाये।
सहेली → अरे ! ये तो मेरा है, देखो नाम भी लिखा है।

भेद-विज्ञान वस्तु के असली स्वरूप को प्रकाशित कर देता है। बीमारी का पता लगने पर ठीक होनी शुरू हो जाती है।

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

जब हमें कोई धोखा देता है/ हमारा अहित करता है, उसे हम बैरी मानते हैं।
लेकिन मोह युगों से हमें धोखा देता आ रहा है/ हमारा अहित करता आ रहा है, फिर भी हम उसे अच्छा/ प्रिय मानते आ रहे हैं!
कारण ?
अपने को झूठा आश्वासन देते रहते हैं कि आज नहीं पर आगे हितकारी होगा।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

शरीर को सुख,
मन को मज़ा,
आत्मा को आनंद।

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

क्या पाप करने में भी आत्मा को आनंद आयेगा ?

आर.के.जैन

हाँ, जब आत्मा पर काले कर्म लिपट जाते हैं तब काले कर्म करके आनंदित होती है।

एक राजा ने हिरणी के बच्चे का शिकार किया।
हिरणी ने श्राप दिया → तेरा बच्चा जब स्वच्छंद घूमने लगे तब वह भी मारा जाये।
राजा बच्चे को पिंजरे में रखने लगा। बच्चा बड़ा होता गया, पिंजरा भी; इससे होगा ये कि बच्चा कभी नहीं जान पायेगा कि वह कैद में है।

क्या हम सब लोक(संसार) के पिंजरे में कैद नहीं है ?
बस ! अपने को कैदी मानते नहीं है।

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

शराबी ने नशे में सारे साथियों को भोजन का निमंत्रण दे दिया। सब पीछे-पीछे घर आ गये।
पत्नी ने कह दिया –> वे घर में नहीं हैं।
साथी –> हमने खुद उसे घर में घुसते हुए देखा है !
शराबी –> जब गृहस्वामिनी पत्नी कह रही है कि मैं घर में नहीं हूँ तो मानते क्यों नहीं ?

“मैं” आत्मा हूँ। यह कौन कह रहा है ?
वही गृह (शरीर)-स्वामी है (पत्नी की तरह)।
उसकी मानते क्यों नहीं ??

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

पत्थर ऊपर फेंकने पर कम तेजी से जाता है। लौटता बहुत तेजी के साथ, सिर फोड़ देता है।
कर्म ऊपर जाते पत्थर हैं, कर्म-फल लौटते पत्थर/ कर्म ब्याज सहित फल देते हैं।

मुनि श्री मंगल सागर जी

कैसे पता लगे कि मेरी आत्मा जाग्रत है या नहीं ?
सुबह जगने आदि के लिये आत्मा को संबोधन करें कि मुझे इतने बजे जगा देना। यदि Respond करती है तो जाग्रत है।

चिंतन

एक हिंसा, हिंसा के लिये → महान दोष।
दूसरी हिंसा, शुभ क्रियाओं में (पूजा, मंदिर निर्माण आदि) → जघन्य दोष।
जीव दोनों में मरे, दूसरी हिंसा में मरने वाले भी सुगति में नहीं जायेंगे क्योंकि उनको एहसास ही नहीं कि वे अच्छे काम के दौरान मरे हैं।

निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

1. दुखी/ दीनहीन होंगे तो ध्यान आकर्षित होगा।
2. समय से पहले बड़े होने की आकांक्षा; बल/ शरीर तो बढ़ा नहीं सकते सो बौद्धिक ज्ञान बढ़ाने अचरा/ कचरा दिमाग में भर लो।
बड़ा नुकसान –> 5 साल के निर्णय 50 साल पर लागू हो कर, Bad Result दे रहे हैं।

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

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