मौन = म + ऊ + न = मध्य* + ऊर्ध्व (देवलोक) + नरक
(लोकों की यात्रा)।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
*मनुष्य + जानवरों का लोक।
डॉक्टर का ऑपरेशन तो सफल हुआ, पर मरीज़ मर गया।
हम हर चीज सीमा में चाहते हैं, जैसे बाल, नाखून, कपड़े, पर संपत्ति की कोई सीमा नहीं निर्धारित करते।
कितना कमाना, किस कीमत पर कमाना !
संपत्ति के अर्जन, संरक्षण और संवर्धन, सब में अशांति/ आकुलता जुड़ी रहती है, सेहत खराब होती है, पारिवारिक जीवन समाप्त हो जाता है।
पर हम उस डॉक्टर की तरह इसे अपना सफल ऑपरेशन मानने लगते हैं; चाहे हम खुद समाप्त हो जाएं, या हमारा परिवार बिखर जाए!
आर्यिका पूर्णमति माता जी (3 अक्टूबर)
जिसने हार पहनने में अपना सम्मान मान लिया मानो उसकी आत्मा हार गई।
आर्यिका पूर्णमति माता जी (2 अक्टूबर)
एक व्यक्ति जलेबी की दुकान पर एक किलो जलेबी खा गया।
पैसे ?
नहीं हैं।
मालिक ने पिटाई कर दी।
यदि जलेबी इस भाव खाने को मिलती है तो एक किलो और तौल दो।
आपकी सात्विकता पर व्यवहार भारी नहीं पड़ना चाहिये। बाहर की दुर्गंध अंदर तक नहीं जानी चाहिए/ प्रभावित नहीं करनी चाहिये।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
अलफ़ाज़ का भी जायका होता है।
परोसने से पहले चख लिया करें।
(अरविंद बड़जात्या)
कैरम के खेल में चैंपियन वह नहीं बनता जिसका निशाना बहुत अच्छा हो। बल्कि वह बनता है जो अपनी अगली गोटी बनाना तथा दुश्मन की गोटी बिगाड़ना भी जानता हो।
हम भी परमार्थ में तभी सफल होंगे जब हम अगले भव को बनाने तथा बुराइयों को बिगाड़ना भी जानते हों।
चिंतन
WHO के अनुसार कोविड के पहले भी मानसिक अस्वस्थता 14% लोगों में पायी जाती थी।
धार्मिक लोगों में यह Rare होती है।
कारण ?
धर्म से दूर रहने वालों में असंतुष्टि।
कोविड के बाद 33% हो गयी है।
कारण ?
शारीरिक अस्वस्थता के साथ-साथ भय ज्यादा जुड़ गया था।
धार्मिकों में कोविड भी कम हुआ था, भय भी कम रहता है, क्योंकि वे कर्म-सिद्धांत पर ज्यादा विश्वास करते हैं।
डॉ. एस. एम. जैन
विधि, विधि और विधि से सफलता मिलती है यानी भाग्य, तरीका और पुरुषार्थ से।
मुनि श्री मंगलानंदसागर जी
जीवन बहुआयामी है सो पुरुषार्थ भी।
-
- रचनात्मक जैसे माता पिता का बच्चों के लिये।
- गैर-रचनात्मक बच्चों का माता पिता के लिये।
हमारे पुरुषार्थ में कितने रचनात्मक कितने गैर-रचनात्मक !
गैर-रचनात्मक करते समय कर्म-सिद्धांत का ध्यान रखें कि इनका फल क्या होगा !!
ब्र. डॉ. नीलेश भैया
एक सेठ के दो बेटे थे छोटा बेटा समय बर्बाद करता रहता था। बड़ा बेटा कर्म और धर्म में पुरुषार्थ करता था। एक बार छोटे बेटे ने पिता से ₹5000 मांगे, पिता ने तुरंत मना कर दिया। थोड़ी देर बाद बड़ा बेटा आया, उसने 5 लाख मांगे पिता ने तुरंत दे दिए।
कारण ?
समय बर्बाद करने वाले को कुछ भी नहीं मिलता।
हम अपने जीवन को देखें… क्या हम अपने आत्म-कल्याण के लिए समय का सदुपयोग कर रहे हैं या निरर्थक बातों में आपस में लड़भिड़ रहे हैं। हम में से ज्यादातर की उम्र अच्छी हो गई है, अगले जन्म की तैयारी करें या इस जन्म में पहले की तरह समय बर्बाद करते रहें ? यदि ऐसा ही करते रहे तो अगले जन्म में हमको ₹5000 भी नहीं मिलेंगे !
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी(23 सितम्बर)
ब्रह्मचारी बसंता भैया श्री दीपचंद वर्णी जी से तीर्थयात्रा जाते समय, दिशा निर्देश मांगने गये।
3 रत्न हमेशा पास रखना – क्षमा, विनय, सरलता
तथा
3 को पोटली से बाहर मत आने देना आलस, गालियां तथा कृतघ्नता।
मुनि श्री मंगल सागर जी
कोई चोर आपके घर में घुसे, सोने चाँदी को तो देखे भी नहीं, आपके घर की गंदगी उठा ले जाए तो आपको दु:ख होगा क्या ?
इसी तरह यदि कोई आपके गुणों को तो देखे नहीं, सिर्फ़ अवगुण ग्रहण करे तो आप दुखी होंगे क्या ?
दूसरा आपके हिस्से परोपकार भी आएगा क्योंकि वह अवगुणों का बखान करके खुश हो रहा है।
यदि आप अपना अपमान समझते हो तो यह तो आपने खुद अपनी आत्मा का अपमान किया, बार-बार उसका चिंतन करके।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी(23 सितम्बर)
जीवन मरण सिक्के के दो पहलू हैं।
एक जितना बड़ा/ मूल्यवान होगा, दूसरा भी उतना ही (जैसे साधुजन/ भगवान का)।
“सौफी का संसार” (जॉस्टिन गार्डर)
आजकल हड़प्पा(हड़पना) पद्धति चल रही है।
लेकिन ध्यान रहे… अगले जन्म में यदि हड़पने वाला पेड़ बना तो जिसका हड़पा है वो साइड में यूकेलिप्टिस का पेड़ बनेगा जो तुम्हारा सारा पानी खींच लेगा।
आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
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